२२४ बस, उसमें पूरे आत्माका स्वरूप आ गया। अबद्धस्पृष्ट-आत्मा बन्धा नहीं है, स्पर्शित नहीं है। आत्मा सामान्यसे विशेष हो नहीं जाता। आत्मा नियत है, अनियतरूप नहीं है। समुद्रका दृष्टान्त दिया। इस वृद्धि-हानिरूप आत्मा मूल स्वभावसे होता नहीं। आत्मा विशेषरूप अन्य-अन्य होता नहीं। आत्मा अनन्य (है)। अन्य-अन्य होता नहीं, एकरूप है। सब गुणोंके भेद होनेके बावजूद अभेद है। ऐसा समान्य है। विभावके साथ (होने पर भी) विभावरूप होता नहीं। ऐसा आत्मा है। ऐसे आत्माको पहचाने तो जिनशासन सकल देखे खरे। पूरा जिनशासन उसमें आ जाता है।
जैसा आत्माका स्वरूप है, आत्मा बन्धा नहीं है, आत्मा स्पर्शित नहीं हुआ है, आत्मा विशेषरूप होता नहीं, आत्मा अन्य-अन्य होता नहीं, आत्मा वृद्धि-हानिरूप होता नहीं। जैसे अग्निके (संयोगसे जल) उष्णरूप होता है। वैसे आत्मा शीतलरूप है। विभावकी उष्णता उसमें नहीं है। सर्व प्रकारसे आत्माका स्वरूप पहचाने। द्रव्यको (पहचाने) और मूल द्रव्य पर दृष्टि करे और पर्यायका स्वरूप साथमें पहचाने। वह जिनशासन सकल देखे खरे। ऐसा आत्माका स्वरूप यथार्थपने पहचाने, उसमें सब आ जाता है। ऐसा सब होनेके बावजूद भी स्वयं ऐसा अबद्धस्पृष्ट है।
उसमें आता है न? कमलिनीका पत्र है, वह जलसे निर्लेप है। उसके समीप जाकर देखे तो वह बन्धा हुआ, स्पर्शित हुआ दिखाई दे। अन्दर देखे तो बन्धा हुआ, स्पर्शित हुआ नहीं है। भूतार्थ दृष्टिसे देखे तो बन्धा हुआ, स्पर्शित नहीं हुआ है। और अभूतार्थसे देखे तो वह बन्धा हुआ, स्पर्शित हुआ दिखाई देता है। इसलिये उसे मूल वस्तु स्वरूपसे देख और अभूतार्थ दृष्टिसे उस रूप पर्यायमें है, लेकिन द्रव्यदृष्टिसे उस रूप नहीं है।
मुमुक्षुः- ऐसे आत्माका अनुभव कर।
समाधानः- ऐसे आत्माका अनुभव कर।
मुमुक्षुः- वह जिनशासन।
समाधानः- उसमें समस्त जिनशासन आ गया। मूल वस्तुको जानी तो समस्त जिनशासन (आ गया)। पूरा मुक्तिका मार्ग, स्वानुभूति सब आ गया।
मुमुक्षुः- .. मुनिओंको नहीं मान रहे हैं, उसका जवाब देना हमें नहीं आता। द्रव्यलिंगी मिथ्यादृष्टि मुनि और द्रव्यलिंगी सम्यग्दृष्टि, इसके बारेमें आबप खुलासा कर देंगे तो मेरी शंका मिट जायेगी।
समाधानः- द्रव्यलिंगी मिथ्यादृष्टि मुनि और सम्यग्दृष्टि द्रव्यलिंगी मुनि तो उसमें क्या पूछना है?
मुमुक्षुः- जैसे आजके जो मुनि हैं, हमको दिखे तो हमें वंदना करना या नहीं