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करना, कैसे..?
मुमुक्षुः- वह आपके ऊपर निर्भर है। उसका तत्त्व क्या है वह... मुमुक्षुः- शंका जो है, लोग बोलते हैं, हमको जवाब देना नहीं आता। मुमुक्षुः- बोलने दो, जवाब क्यों दे? अपना अधिकार नहीं है जवाब देनेका, अपनेको समझ लेना।
समाधानः- ... मिथ्यादृष्टि तो आत्माको जानता ही नहीं है। स्व-परकी एकत्वबुद्धि है। आत्मा भिन्न है, शरीर भिन्न है, विभाव मेरा स्वभाव नहीं है। सबमें एकत्वबुद्धि मिथ्यादृष्टिको हो रही है।
सच्चे मुनि तो छठ्ठे-सातवें गुणस्थानमें झुलनेवाले हैं। अंतर्मुहूर्त-अंतर्मुहूर्तमें स्वानुभूति होती है। यथार्थ मुनि हो तो। उसको स्वानुभूति तो है नहीं। मात्र बाहरसे वेष धारण कर लिया। और वर्तमानमें तो पंच महाव्रत आदि जो शास्त्रमें कहे हैं, ऐसी क्रिया भी वर्तमानमें तो नहीं है। जो शास्त्रमें (आता है कि) आहार कैसे लेना, ऐसी क्रिया भी बाहरमें नहीं है, वर्तमान मुनिमें तो।
पहले चतुर्थ कालमें द्रव्यलिंगी मुनि तो सब क्रिया पाले, सब करे तो भी भीतरमें तो एकत्वबुद्धि हो रही है। शुभभावसे मेरा कल्याण हो जायगा, शुभभावमें रुचि रहती है, ऐसे मुनि होते हैं तो भी वह मुनि तो नहीं है। वास्तविक मुनिकी दशा नहीं है तो वह मुनि नहीं है। और सम्यग्दृष्टि मुनि द्रव्यलिंगी बाहरमें वेश धारण कर लिया और सम्यग्दर्शन हो गया। तो सम्यग्दर्शन तो है, परन्तु उसे मुनिकी दशा नहीं है। मुनिदशा नहीं है, बाहरमें वेश तो है, उसे मुनिकी दशा नहीं है। उसको सम्यग्दर्शन तो हुआ है। बाहरमें कैसा व्यवहार करना वह तो अपने इतना समझना कि वंदन व्यवहार किसको होता है? भीतरमें यथार्थ दशा प्रगट हुयी हो, उसे वंदन व्यवहार होता है। सच्चे मुनिको हो सकता है।
मुमुक्षुः- शास्त्रोंमें भी ऐसा आता है, बहिनश्री! कहते हैं न कि पंचमकालके आखरी तक चतुर्विध संघ रहेगा, तो?
समाधानः- आखीर तक रहेगा, परन्तु वर्तमानमें तो कोई दिखाई नहीं देते। वह तो अपनेको परीक्षा करनी पडती है। वर्तमानमें कोई दिखाई नहीं देते। होते हैं, होते हैं तो कभी-कभी... कोई होते हो तो भी वर्तमानमें दिखाई नहीं देते। ऐसा निषेध नहीं है। होते हैं, कोई मुनि होते हैं, लेकिन वर्तमानमें ऐेसे दिखाई नहीं देते। उसमें ऐसा कोई काल आ जाता है तो वर्तमानमें मुनि दिखाई नहीं देते। सच्चे मुनि नहीं दिखाई देते। पहले हो गये, सब आचार्य हो गये, परन्तु वर्तमानमें कोई देखनेमें नहीं आते। निषेध नहीं है, पंचमकालके आखिर तक मुनि होते रहते हैं, परन्तु बीचमें कोई