२२६ बार नहीं भी होते हैं, वर्तमानमें दिखाई नहीं देते। मार्ग बतानेवाले गुरुदेव हुए, उन्होंने मार्ग सच्चा बताया। परन्तु मुनि तो वर्तमानमें कोई दिखाई नहीं देते। कहाँ हो, दिखाई नहीं देते।
मुमुक्षुः- हो सकते हैं, लेकिन देखनेमें नहीं आते।
समाधानः- वर्तमान देखनेमें नहीं आते। वर्तमान कोई काल ऐसा आ जाता है। अभी देखनेमें नहीं आते। हो सकते हैं। पंचमकालके... होते हैं।
मुमुक्षुः- लिखा हुआ है वह भी ठीक है, परन्तु.. समादानः- लिका हुआ है, बराबर है। वर्तमानमें कोई-कोई काल ऐसा आ जाता है। होते हैं, नहीं होते हैं, होते हैं, नहीं होते हैं। निषेध नहीं है।
मुमुक्षुः- नमोस्तु..
समाधानः- नमोस्तु लेकिन किसको करना? सच्चे देव-गुरुको नमस्कार करने हैं न। बाहरमें वेष धारण कर लिया तो क्या वेषको नमस्कार होता है? अष्टपाहुडमें क्या आता है? मुनि आचार्यदेव कहते हैं, सच्चे मुनिको नमस्कार होते हैं। कैसे करना, नहीं करना, अपने भाव पर आधारित है। लेकिन लाभ तो सच्चे मुनिको नमस्कार (करनेसे होता है)। अष्टपाहुड शास्त्रमें कुन्दकुन्दाचार्य लिखते हैं, सच्चे मुनिको नमस्कार करना। परीक्षा करना। परीक्षा तो करनी पडती है।
मुमुक्षुको जिसको मोक्षकी इच्छा होवे, जिसको मोक्ष, अपना कल्याण करना है, उसको सब परीक्षा करके ग्रहण करना चाहिये। बिना परीक्षा किये,... मोक्षका स्वरूप कैसा है? आत्माका स्वरूप समझना। यह शरीर मेरा नहीं है, विभावस्वभाव मेरा नहीं है। मैं ज्ञायक हूँ। यह सब विचार करके परीक्षा करके सब नक्की करता है। फिर बाहरमें सच्चे देव, सच्चे गुरु, सच्चे शास्त्र, सबकी परीक्षा करे। जिसको मोक्षकी इच्छा होवे, वह परीक्षा (करता है)। इतना तो क्षयोपशम मिला है। आत्मार्थी हो, आत्माका प्रयोजन हो तो इतनी परीक्षा तो हो सकती है।
मुमुक्षुः- मुनिकी ... आचार कोई बिलकुल पालते नहीं। जो ऐसा हो तो .. आ जाते हैं। बाह्य .. तो परीक्षामें क्या दिक्कत है? ... उसमें क्या .. एक भी सच्चे बताओ।
मुमुक्षुः- .. उसको तो मुनि मानेंगे कि नहीं मानेंगे? मुमुक्षुः- तो उसको प्रणाम नहीं करना चाहिये। जो बाह्य आचार ... टोडरमलजीने कहा है, समाजमें कुछ विरोध नहीं होवे, इसलिये कोई द्रव्यलिंगी मुनि द्रव्यलिंगका आचार बराबर पालते हो, तो...
समाधानः- .. अपने ऊपर है। बाहरकी बात है न। कल्याण तो अपने स्वरूपको