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केवलज्ञानी दोनों समान हैं, ऐसा शास्त्रमें आता है। उनका श्रुतज्ञान ऐसा है। प्रवचनसारमें भी केवलि भगवानके पास गये थे वह बात तो गाथाओंमेंसे निकलता है। वर्तमान क्षेत्रमें विचरते सीमंधर भगवान एवं प्रत्येक-प्रत्येक सबको वन्दन करता हूँ, आदि सब आता है। निकलता है क्या, कितने ही आचायाने लिखा है कि कुन्दकुन्दचार्य विदेहक्षेत्रमें गये थे। ऐसे लेख आते हैैं, उसके सब शिलालेख आते हैं। उसका तो विचार करना पडे ऐसा कहाँ है? शिलालेखोंमें, पंचास्तिकायमें, देवसेनाचार्य आदि सब कहते हैं। उनकी लेखनीके बारेमें कहाँ विचार करना पडे ऐसा है। उनकी गाथाओंमें (आता है), प्रत्येक- प्रत्येकको विदेहक्षेत्रमें विचरते भगवंतोंको नमस्कार करता हूँ।
मुमुक्षुः- उनकी वाणीमें ॐ ही आता है, ऐसा है क्या?
समाधानः- केवलज्ञानीकी वाणीमें ॐ आता है। आचायाकी वाणीमें ॐ नहीं आता। भगवानकी वाणीमें ॐ आता है। भगवानको इच्छा टूट गई है, वीतराग हो गये हैं, इसलिये वाणीमें ॐ आता है। आचार्य तो मुनि हैं, शास्त्रमें द्रव्य-गुण-पर्यायका विस्तार करके वर्णन करते हैं। भगवानकी वाणीमें ॐ आता है, परन्तु उसमें अनन्त रहस्य आता है। पूरे लोकालोकका स्वरूप आता है।
मुमुक्षुः- आपश्री केवलज्ञानका स्वरूप बताते हो तब ऐसा लगता है कि आपको भी भेंट हुई हो और सुना हो, ऐसे ही कहते हो।
समाधानः- जिसको जैसा अर्थ करना हो वैसा करे।
मुमुक्षुः- माताजी! लोगोंको तो शिलालेक आदिका आधार लेना पडता है, हमें तो साक्षात आपका आधार मिला है। कुन्दकुन्दाचार्य वहाँ पधारे थे, आपने साक्षात देखा है, इससे बढकर और क्या आधार चाहिये? हम तो अधिक भाग्यशाली हैं, आप साक्षात मोजूद हैं। लोगोंको मात्र शिलालेख देखने मिलते हैं, आप तो साक्षात हमें प्राप्त हुए हैं।
समाधानः- शास्त्रमें सब प्रमाणभूत है। शिलालेख है, सब टीकाओंमें है, सब प्रमाणभूत है। जैनसमाजमें, दिगम्बर समाजमें (आधारभूत है)। आप सब मानते हो वह माने।
मुमुक्षुः- माताजी! हमें तो आपका मानना है, दूसरोंको जो मानना है वह माने, हमें क्या? हमने एक ज्ञानीको पकडे हैं, दूसरेको क्यों पकडना? बकरेका झुंड होता है, सिंहका नहीं होता।
समाधानः- .. चतुर्थ गुणस्थान यानी सम्यग्दर्शनकी भूमिका है। सम्यग्दर्शन प्राप्त हो, उसे चतुर्थ गुणस्थान कहते हैं। स्वानुभूति हो, भेदज्ञान हो, आत्माकी स्वानुभूति होती है वह चतुर्थ गुणस्थान है।