Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-२)

६८

मुमुक्षुः- साथ-साथ सम्यग्दर्शन होता है, तीनों साथमें होता है?

समाधानः- सम्यग्दर्शन-ज्ञान होता है, चतुर्थ गुणस्थानमें अभी चारित्र नहीं है। वास्तविक चारित्र मुनिदशामें (होता है)। ये तो गृहस्थाश्रममें होते हैं इसलिये थोडी लीनता है। बाकी चारित्रदशा रत्नत्रय नहीं, सम्यग्दर्शन कह सकते हैं। स्वरूपाचरण चारित्र कहते हैं। लेकिन जो मुनि होते हैं, ऐसा चारित्र नहीं।

मुमुक्षुः- पौन सेकण्डसे अधिक निद्रा नहीं होती, ऐसा कैसे?

समाधानः- छठ्ठे-सातवें गुणस्थानमें झुलते हैं। अंतर्मुहूर्त-अंतर्मुहूर्तमें आत्मामें जाते हैं। उसमें निद्रा कैसे हो? क्षण-क्षणमें जागृत होते हैैं, क्षण-क्षणमें जागृत होते हैं।

मुमुक्षुः- सम्यग्दर्शन यानी क्या? और उसे प्राप्त करनेके लिये इस पामर जीवको ... कैसे हो?

समाधानः- सम्यग्दर्शनका स्वरूप, इस पंचमकालमें गुरुदेवने यहाँ पधारकर कितना विस्तार करके समझाया है। समझना मुश्किल, प्राप्त करना मुश्किल, सब मुश्किल था। परन्तु गुरुदेवने कितना मार्ग (स्पष्ट किया)।

.. आत्माकी ओर देखता भी नहीं। बाहरमें ही उसकी दृष्टि है। बाहरसे धर्म होता है, सबकुछ बाहरसे ही मान लिया है। बाहरसे ज्ञान आता है, बाहरसे सुख आता है, बाहरसे सब आता है। दृष्टि बाहर ही है, इसलिये उसे दुर्लभ हो गया है। अंतर दृष्टि करे तो पहचान सकता है। अंतर दृष्टि किये बिना जन्म-मरण होते ही रहते हैं। ज्यादासे ज्यादा शुभभाव करे, बाह्य क्रिया करे, कुछ करे, कुछ छोडे, कुछ करे, (उसमें भी) शुभभाव हो तो पुण्यबन्ध होता है। पुण्यसे देवमें जाता है। परन्तु भवका अभाव तो होता नहीं। भवका अभाव तो एक आत्माको पहचाने कि मैं चैतन्यतत्त्व अनादिसे क्यों रखडा? मेरा क्या स्वरूप है? और ये विभावका दुःख कैसे टले? अन्दर विचार करे, अन्दर जिज्ञासा करे, लगनी लगाये, उसे इस संसारकी थकान लगे तो अंतरमें जाये। उसे थकान नहीं लगी और अन्दरसे उसे छूटनेकी इच्छा हो कि मैं कैसे छूटूं? अंतरमेंसे मार्ग मिल जाता है। स्वयं ही है, गुप्त नहीं है, स्वयं नहीं है। मार्ग अंतरसे मिल जाता है।

आत्मा जाननेवाला ज्ञायक है। उसका ज्ञानलक्षण है, ज्ञानलक्षणसे पहचानमें आये ऐसा है। और उसका स्वरूप गुरुदेवने बहुत बताया है। उसे समझानेवाले गुरुदेव प्रत्यक्ष थे और उनकी वाणी मूसलाधार बरसती थी। आत्माका स्वरूप क्या है? उसके द्रव्य- गुण-पर्याय क्या है? पुदगलके क्या है? दोनों वस्तु अत्यंत भिन्न हैं। अंतर आत्मा अनन्त गुणोंसे विराजमान अनुपम तत्त्व है। लेकिन उसे पहचाने तो अंतरमें जाये। उसकी लगनी लगाये, उसकी जिज्ञासा करे तो होता है। जिज्ञासा हुए बिना, अंतर लगनी लगे बिना,