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उसका स्वरूप पहचाने बिना आगे नहीं जा सकता। उसका स्वरूप पहचाननेका प्रयत्न करना चाहिये। उसका स्वरूप पहचाननेेके लिये विचार करे, वांचन करे, शास्त्र स्वाध्याय करे, गुरुदेवने क्या कहा है, उसका विचार करे तो आगे बढ सकता है।
मुुमुक्षुः- ऐसी शक्ति स्वयंमें है कि जिसके आधारसे वह आगे बढ सके। समाधानः- है, स्वयं अनन्त शक्तिसे भरा आत्मा है। कोई दे तो हो जाये, ऐसा नहीं है। स्वयं ही है, स्वतंत्र है। वह पराधीन नहीं है कि कोई कर दे तो हो जाये। स्वयंमें अनन्त शक्ति है। जैसे भगवान हैं, वैसा स्वयं है। जैसे सिद्ध भगवान हैं, जैसे तीर्थंकरदेव हैं, उनका जैसा आत्मा है, वैसा ही स्वयंका आत्मा है। उसमें और इसके स्वभावमें कुछ भी अंतर नहीं है।
भगवानने जो प्राप्त किया वह स्वयं कर सके ऐसा है। अंतरमें पुरुषार्थ करे तो (होता है)। उतनी अनन्त शक्तिसे भरा चैतन्यदेव विराजता है। उसमें अनन्त शक्ति भरी है। लेकिन पुरुषार्थ करे तो होता है, पुरुषार्थ किये बिना (नहीं होता)। बारंबार उसका पुरुषार्थ करना चाहिये। क्षण-क्षणमें उसका विचार करना चाहिये, उसकी लगनी लगाये। छाछमेंसे मक्खन बनाना हो तो बारंबार उसे बिलोये तो ऊपर आता है। बिना प्रयत्न नहीं आता।
इसप्रकार भिन्न होनेके लिये, विभावसे भिन्न होनेके लिये... अंतरमें भिन्न ही है, लेकिन एकत्वबुद्धि (हो गयी है)। बारंबार उसका विचार करे, मंथन करे, बारंबार करे, लगनी लगाये तो भिन्न हो सकता है। अनन्त शक्तिसे भरा है।
मुमुक्षुः- शक्ति तो प्रगट हो तब आती है न?
समाधानः- अन्दर अनन्त शक्ति भरी है। प्रगट हो तब आये, ऐसा नहीं। उसमें शक्ति भरी ही है। स्वयं प्रयास करे तो होता है। पानी स्वभावसे निर्मल ही है। कीचडके कारण मैला दिखता है, परन्तु उसका स्वभाव निर्मल है। उसमें निर्मली औषधि डाले तो निर्मल होता है। वैसे स्वयं स्वभावसे निर्मल है। अनन्त शक्तिसे भरा है। पुरुषार्थ करके, अन्दर यथार्थ ज्ञान करके, ज्ञानकी औषदि डाले, प्रज्ञाछैनी प्रगट करे तो आत्मा अन्दरसे प्रगट हो ऐसा है।
मुमुक्षुः- आपने दो बात कही, शक्ति भरी भी है और पुरुषार्थ भी करना पडे। समाधानः- भरी है, परन्तु उसे कार्यान्वित नहीं की है। कार्यमें रखे तो होता है। शक्ति तो भरी ही है। स्वयं करता नहीं है।