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मुमुक्षुः- परमाणुको अथवा पुदगल स्वयंको अर्पण करते हैं। और आत्मा देखता- जानता है। तो रजकण केवलदर्शनीको कैसा अर्पण करना...
समाधानः- .. ऐसा उसका ज्ञान होता है, वैसा उसका ज्ञेय होता है। जैसा ज्ञेय होता है, वैसा ज्ञान होता है। वह तो सम्बन्ध ही होता है। उसे अर्पण नहीं करता। दर्पणमें प्रतिबिंब दिखते हैं। उस प्रतिबिंबरूप दर्पण स्वयं परिणमता है। प्रतिबिंब अन्दर प्रवेश नहीं करते, दर्पणके अन्दर प्रवेश नहीं करते।
मुमुक्षुः- वह दर्पणकी स्वच्छता है।
समाधानः- हाँ, वह दर्पणकी स्वच्छता है। वैसे ज्ञानकी स्वच्छता है कि जैसा ज्ञेय हो वैसे ज्ञान परिणमता है। ज्ञान परिणमता है। वह बाह्य ज्ञेय आकर अन्दर कुछ नहीं करता है। और ज्ञान वहाँ जाकर, दर्पण बाहर प्रतिबिंबमें जाकर कुछ नहीं करता है, वैसे ज्ञान बाहर जाकर ज्ञेयोंको कुछ नहीं करता है।
मुमुक्षुः- केवलिओंकी वाणी ऐसी होती है कि वे कहे वैसा ही बने। तो वाणी तो पुदगल है, तो उसमें ऐसी कैसी शक्ति आयी?
समाधानः- वाणी तो पुदगल है। परन्तु जैसा वस्तुका स्वरूप है, वैसी वाणी निकलती है। दूरसे, जैसे चुंबक होता है, वह चुंबक सूईको नहीं कहता है कि तू यहाँ आ। और वह सूईको खीँचने भी नहीं जाता। और सूई स्वतंत्र आती है। ऐसा निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध जगतमें पुदगलोंके (बीच होता है)। ऐसा निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध है।
मुमुक्षुः- लेकिन वह सम्बन्ध नहीं है।
समाधानः- वह कुछ करता नहीं है। चुंबक सूईको कुछ करने नहीं जाता है और सूई चुंबकके कारण खीँची नहीं आती। उसका स्वभाव ही ऐसा है। जहाँ चुंबक हो वहाँ सूई आये। बस, ऐसा सम्बन्ध ही है। स्वतंत्र परिणमन है।
मुमुक्षुः- ...
समाधानः- भिन्न द्रव्य न रहे, यदि उसका प्रभाव पडता हो तो।
मुमुक्षुः- ... अच्छी अस्पताल हो तो मैं अस्पताल बन जाऊँ। मेरी अस्पताल,.. मैं अस्पताल बन गया।
समाधानः- अस्पताल पर प्रभाव नहीं पडता।
मुमुक्षुः- प्रभाव पडे तो वह, वह बन जाय। तो तीर्थंकर शरीर बन जाय। तीर्थंकरने परमाणुको सौम्या बनाया हो तो..
मुमुक्षुः- प्रभावका अर्थ ऐसा नहीं कर सकते, मानो हम लोग बैठे हैं और उसमें आत्मा ही वैसे परिणमता है। उसमें तो उसको आत्माको कुछ नहीं है, परन्तु