२५६ स्वयंका आत्मा स्वयं वैसे परिणमे। उसे प्रभाव लगे ही।
समाधानः- स्वयं परिणमता है। स्वयं प्रभावको ग्रहण करता है।
मुमुक्षुः- क्योंकि ऐसा तो बहुत जगह देखते हैं कि किसीके प्रभावमें आ जाते हैं।
समाधानः- गुरुदेवकी वाणी ऐसी थी कि सुननेवाले एकदम स्थिर हो जाय और आश्चर्यचकित हो जाते। लेकिन स्वयंकी ऐसी लायकता होती है। वाणी निमित्त और अन्दर आत्माकी योग्यता, दोनोंका सम्बन्ध है।
मुुमुक्षुः- बहुत लोग कहते हैं, मैंने तो नहीं देखे हैं, परन्तु गुरुदेवके पास बैठें और उनकी वाणी सुने तो उसका कुछ अलग ही प्रभाव पडता।
मुमुक्षुः- कोई विरोध भी करते थे।
समाधानः- विरोध करनेवाले भी थे, विरोध करते थे। मुंबईमें कितनी बडी जनसंख्यामें गुरुदेव प्रवचन करते थे। सब आश्चर्यचकित हो जाते थे कि कुछ आत्माकी बात करते हैं। परन्तु जीवोंकी ऐसी लायकात होती है।
मुमुक्षुः- मैंने कहा वह बराबर है? कि सामनेवाला आत्मा वैसे परिणमता है।
समाधानः- आत्मा परिणमता है। प्रभाव नहीं, आत्मा उस निमित्तको प्राप्त करके आत्मा स्वयं परिणमता है।
मुमुक्षुः- क्योंकि मैंने इस प्रकारका ऐसा समाधान खोज लिया कि ऐसे..
समाधानः- बने... तो चावल, अनाज आदि पके। लेकिन चावल स्वयं पकते हैं। अग्नि निमित्त है। अग्नि कुछ नहीं करती, उसकी योग्यता है इसलिये होता है। जिस मुँगमें नमी न हो, वह अग्नि मिले तो भी पकते नहीं। वह वैसा ही रहता है। इसलिये जो कोई ऐसे आत्मा हो उसे ऐसे गुरुका निमित्त मिले तो भी वे पकते नहीं। परन्तु जो ऐसे नरम होते हैं, वह अग्निका निमित्त पाकर मुँग आदि पक जाते हैं।
वैसे पात्र आत्मा हो उसे गुरुकी वाणी मिले वहाँ ऐसे पक जाते हैं, परिणमित हो जाते हैं। लेकिन कोई उपरोक्त मुँग जैसे हो, उसे कुछ.. अभव्य जैसे हो उसे कोई असर ही नहीं होती।