Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 693 of 1906

 

अमृत वाणी (भाग-३)

२६० जो स्वयं जाननेवाला है। सबको जाना इसलिये जाननेवाला नहीं, परन्तु स्वयं उसका स्वरूप ही जाननेका है। जैसे यह जड। वह स्वयं जाननेवाला है। वह जाननमात्र नहीं, परन्तु अनन्त अदभुत स्वरूपसे भरा है वह मैं हूँ। ऐसे स्वयंको विकल्पसे नहीं, अपितु स्वभावसे ग्रहण करे। गुड शब्द नहीं, शक्कर शब्द नहीं परन्तु उस वस्तुको ग्रहण करे। उसे ग्रहण करके उसका ध्यान करे, उसमें एकाग्र हो तो होता है। लेकिन उसकी श्रद्धा, सच्ची प्रतीत पहले हो, निश्चय करे तो ध्यान होता है।

समाधानः- .. ध्यानका फल अन्दर आत्माकी प्राप्ति हो, स्वानुभूतिकी प्राप्त हो।

मुमुक्षुः- उससे निर्जरा होती है?

समाधानः- निर्जरा तो होती है, कर्मकी निर्जरा होती है और अन्दर स्वानुभूतिका फल आवे, अन्दर आत्माकी प्राप्ति हो। आत्मा जो अदभुत स्वरूपसे विराजता है उसकी उसे अनुभूति हो। और कर्मकी निर्जरा हो, कर्मकी निर्जरा हो। परन्तु वह अभी थोडी निर्जरा होती है, पूरी निर्जरा तो केवलज्ञान हो तब होती है। लेकिन सच्ची निर्जरा तो उसे स्वानुभूति हो तब ही होती है। बाकी अनन्त कालसे जो निर्जरा होती है, वह सब तो बन्धन होता है और निर्जरा होती है, बन्धन होता है और निर्जरा होती है, वह सच्ची निर्जरा नहीं है। अन्दर आत्माको ग्रहण करे तो सच्ची निर्जरा होती है।

मुमुक्षुः- जीव जन्मता है और मरता है, ऋषानुबन्धसे इकट्ठे होते हैं, वह कैसे होता है?

समाधानः- जन्म-मरण होते हैं वह उसके कर्मके कारण। जैसे उसने कर्म बान्धे होते हैं, वैसी गति होती है। और आयुष्य बान्धा हो उसका मरण होता है। किसीको पूर्वका सम्बन्ध होता है, तो कोई पूर्वमें हो तो इकट्ठे होते हैं और कोई इकट्ठे नहीं भी होते। उनके परिणामका मेल आवे तो वह ऋषानुबन्ध (होता है)। परिणामका मेल आवे तो इकट्ठे होते हैं। यदि परिणामका मेल न हो तो इकट्ठे नहीं होते। क्योंकि किसीका परिणाम देवलोकमें जाय ऐसे हो, किसीके परिणाम तिर्यंचमें जाय ऐसे हो, कुटुम्बमें सब इकट्ठे हुए हों, सबके परिणाम एक समान नहीं होते हैं। किसीके परिणाम कुछ होते हैं, किसीके परिणाम कुछ और होते हैं, इसलिये कोई कहीं जाता है और कहीं जाता है। इसलिये इकट्ठा होना मुश्किल है। सबके परिणाम एकसमान हो तो वे इकट्ठे होते हैं। .. भगवानके भवमें अगले भवमें अमुक जीवोंके परिणाम समान थे तो साथ- साथ जन्मते थे। और कितने ही जीव तो कोई कहीं जाता है और कोई कहीं जाता है। किसीका मेल नहीं है।

मुमुक्षुः- हमेशा इसी प्रकार इकट्ठे हो ऐसा क्यो नहीं होता? ऋणानुबन्ध हो, अमुक कारण...