Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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समाधानः- परिणामका मेल होवे तो ही इकट्ठे होते हैं। परिणाम भिन्न-भिन्न हो तो इकट्ठे नहीं होते।

मुमुक्षुः- .. मिलते हैं, बिछडते हैं, किसीको ऋणानुबन्ध नहीं है। ...

समाधानः- किसीका मेल होना हो तो हो जाता है। जिज्ञासा सच्ची थी तो मिल गया। सच्चा मिल गया। पढनेका रस था, सत्य खोजनेका (रस था) तो वांचन करते थे, इच्छा थी सत्यकी तो पढते-पढते सत्य प्राप्त हो गया।

मुमुक्षुः- मैंने पूछा भी था, रामायण, भागवत, उपनिषद पढे तो अब क्या?

समाधानः- .. हो तो मिल जाता है। .. हो तो उसे बहुत कृपासे बुलाते थे। वस्तु तो है, अनेक वस्तुएँ हैं। परन्तु तेरा विकल्प छोड दे, तू तेरेमें स्थिर हो जा। वस्तु एक नहीं है। वस्तु भिन्न-भिन्न हैं। तू तेरे विकल्प छोडकर अन्दर स्थिर हो जा।

मुमुक्षुः- इतना सब अलग समझमें आया? एक कहे, ब्रह्म लटका करे, ब्रह्म भासे नहीं... इतने अलग हैं।

समाधानः- समझमें आये ऐसा है, जिसे जिज्ञासा हो उसे।

मुमुक्षुः- बहुत समझमें आये ऐसा है।

समाधानः- समझमें आये ऐसा है। .. देखता है, जो अन्दर वेदन होता है, वह कुछ नहीं है, यह एक विचारमें आये ऐसा नहीं है।

मुमुक्षुः- क्योंकि यह एक अनुभव शास्त्र है।

समाधानः- .. सम्यग्दृष्टिको बोलनेकी.. बाहर बोले तो भी उसे आत्मा भिन्न ही रहता है। चले, शरीर चले तो भी आत्मा भिन्न रहता है। चले, फिरे, बोले, खाय, पीए सब करे, लेकिन उसे आत्मा तो सबमें भिन्न ही रहता है। यह क्रिया हो, शरीर चले, सब हो, लेकिन उसे आत्मा तो भिन्न ही भासता रहता है। उसे राग आवे तो रागसे भी वह भिन्न भासता है। अल्प अस्थिरताको समझता है कि मेरे पुरुषार्थकी मन्दतासे इस रागमें जुडता हूँ। परन्तु सब क्रियामें उसका आत्मा उसे भिन्न भासता है। उसे आत्मा भिन्न उसके वेदनमें, उसके ज्ञानमें, उसके दर्शनमें, उसके आचरणमें सबमें आत्मा भिन्न ही (रहता है), सब क्रियामें। वह चले या बोले या खाये, पीये, जीवन- मरण सबमें आत्मा उसे शाश्वत भिन्न ही दिखता है। आत्मा उसे एकत्व भासित ही नहीं होता है, आत्मा उसे भिन्न ही दिखाई देता है। निद्रामें, स्वप्नमें सबमें आत्मा उसे भिन्न ही रहता है। स्वप्नमें भी उसे आत्मा भिन्न रहता है। उसे सबमें आत्मा भिन्न ही भासित होता रहता है।

यह मैं आत्मा भिन्न, यह शरीर भिन्न, यह खँभा भिन्न दिखाई देता है, यह दीवार