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अनुभव है। इसलिये ज्ञानीकी क्या वर्तना परिणति होती है, वह ज्ञानी ही जानते हैं। परन्तु मुमुक्षु स्वयं विचार करे तो विचारसे अमुक प्रकारसे उसे नक्की हो सकता है। बराबर यथार्थ तो ज्ञानीकी वर्तना ज्ञानी ही जानते हैं। परन्तु मुमुक्षु विचार करे तो नक्की कर सकता है।
मुमुक्षुः- मुमुक्षु है उसे अन्दर तत्त्वका तो यथार्थ निर्णय होता है, बाह्य लक्षणसे...?
समाधानः- हाँ, वह तो बाह्य लक्षणसे जाने। परन्तु उसकी जिज्ञासा अमुक प्रकारकी है, इसलिये बाह्य लक्षणसे जाने। परन्तु अंतरमें उसे यथार्थ जानना तो मुश्किल पडे। तो भी मुमुक्षु सत्पुरुषको पहचान सकता है, बाह्य लक्षणसे। अंतरमें उसे भेदज्ञानकी परिणति कैसे चलती है, वह उसे यथार्थपने बराबर नहीं जानता है, परन्तु उसे अमुक अनुमान द्वारा जान सकता है कि इनकी वाणी कुछ अलग है, वर्तन अलग है, उनके परिचयसे, उनकी वाणीसे अमुक समझ सकता है। वाणी द्वारा, उनके परिचय द्वारा उनका आत्मा क्या काम करता है, उसे अमुक प्रकारसे जान सकता है। नहीं तो सत्पुरुषको पहचाने कैसे? हर जगह आत्मा.. आत्मा.. आत्मा। उसे उसकी परिणतिमें आत्मा ही है।
मुनिओंकी तो बात ही अलग है। उनको तो बाहरका सब छूट गया है। मुनि तो क्षण-क्षणमें आत्मा... ज्ञायककी परिणति तो है परन्तु उन्हें स्वानुभूति अंतर्मुहूर्त-अंतर्मुहूर्तमें होती है।
मुमुक्षुः- .. कौन-से गुणस्थान तक...?
समाधानः- श्रावक छठ्ठे गुणस्थान पर्यंत और पंचम गुणस्थान पर्यंत। देशश्रावक है वह पंचम गुणस्थान और अविरति श्रावक है वह चतुर्थ गुणस्थान पर्यंत होते हैं। मुनि छठ्ठे-सातवें गुणस्थानमें होते हैं। मुनिको बढ गयी है। स्वानुभूतिकी दशा बढ गयी है। श्रावकोंको भेदज्ञानकी धारा है और स्वानुभूति भी है। परन्तु मुनिओंको त्वरासे स्वानुभूति होती है। मुनिओंकी स्थिति बढती है, काल बढता है, सब त्वरासे होता है। अभी वर्तमानमें कोई मुनि दिखाई नहीं देते। परन्तु मुनिदशा पंचमकालके अंत तक है, छठ्ठा- सातवाँ गुणस्थान। शास्त्रमें आता है कि आखिर तक भावलिंगी मुनि होनेवाले हैं। अभी भी छट्ठा-सातवाँ गुणस्थान है। वर्तमानमें ऐसे मुनि दिखाई नहीं देते, लेकिन है सही। कोई-कोई कालमें होते हैं, छठ्ठे-सातवें गुणस्थानमें झुलते हुए मुनि। अट्ठाईस मूलगुण, अंतरमें आत्माकी दशा प्रगट हुई हो। अट्ठाईस मूलगुण किसीको बाहरसे होते हैं, अंतरकी दशाके साथ हो वह भावलिंगी मुनि (हैं)।
मुमुक्षुः- बाहरमें दिखाई नहीं देते हो, अंतरकी स्थिति उसकी ऊँची हो तो...?
समाधानः- जिसे अंतरका हो उसे बाहरमें होता है, ऐसा सम्बन्ध है। ऐसा आता है। अंतरंग दशा हो उसे बाहर होता है। बाहर हो और अन्दर हो या नहीं भी हो।