Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi). Track: 111.

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ट्रेक-१११ (audio) (View topics)

समाधानः- ... परन्तु उसमें दूसरा फेरफार नहीं होता। धूल, मिट्टी एवं पानीसे नहीं होता। उसका रसकस, आगे जाना आदि कम होता है, बाकी वस्तुमें फर्क नहीं पडता। अन्दरसे अनेक प्रकारकी निर्मलता होती थी, ऋद्धियाँ और शक्ति प्रगट होती थी, ऐसा नहीं होता। छठ्ठे-सातवें गुणस्थानके साथ जो उसके साथ सम्बन्धवाले गुण हो, वह बाहरमें भी होते ही हैं।

मुमुक्षुः- जिसे आत्माकी स्थिरता हुयी है, श्रद्धान तो हुआ ही है, परन्तु अस्थिरता भी जिनकी दूर हुयी है।

समाधानः- आत्माकी श्रद्धा होती है, अस्थिरताकी बात अलग है। तो उसे मुनिदशा नहीं होती। यदि उतनी स्थिरता न हो तो मुनिदशा नहीं होती। जिस जातकी दशा हो वैसा बाहर होता है। सबको ऐसा लागू नहीं पडता कि अन्दरमें हो वह बाहर हो। यह तो मुनिदशाके साथ सम्बन्ध है। बाहर पकडमें आये, नहीं आये, परन्तु जो अन्दर हो उसे कोई बाहरसे पकड नहीं सकता। बाहरमें गृहस्थाश्रमवालेको व्यवहार सब अलग होता है। जो अंतरमें हो वह बाहरमें दिखाई नहीं देता। परन्तु यह तो मुनिदशाके गुणके साथ सम्बन्ध है।

मुमुक्षुः- गुरुदेवकी तो बहुत ऊँची वर्तना थी। उन्होंने मुनिदशा अंगीकार नहीं की। तो क्यों नहीं ली?

उत्तरः- मुनिदशा अन्दरकी अलग होती है। मुमुक्षुः- अन्दर तो मुनिदशा नहीं थी? मुमुक्षुः- .. आती है वह बराबर तात्त्विक नहीं है। वैश्य वेष, निर्ग्रंथ भाव हो उसे वैश्य वेष नहीं होता। वैश्य वेषे निर्ग्रंथ भाव....

मुमुक्षुः- ... एक जन्म करके मोक्षमें जायेंगे।

समाधानः- वह बराबर, एक जन्म करके मोक्षमें जायेंगे, वह बराबर। बादमें दूसरे भवमें मुनि बन जायेंगे। निर्ग्रंथ भाव तो है, परन्तु निर्ग्रंथ दशा अभी नहीं है। जो गृहस्थाश्रकी दशा है, मुनिदशा बादमें दूसरे भवमें आयेगी। स्थिरताका मेल करना, उसका विचार करे तो बैठे ऐसा है।