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ऐसा मुख्य लक्षण है, वह उसका असाधारण लक्षण है। इतना सत्य परमार्थ है, इतना सत्य कल्याण है कि जितना यह ज्ञायक-ज्ञानस्वभाव है। जो ज्ञानस्वभाव है उसीमें तू रुचि कर, उसमें प्रीति कर, उसमें संतुष्ट हो। उसीमें सब भरा है। ज्ञान माने मात्र जानना इतना ही नहीं है, परन्तु पूर्ण ज्ञायक है। पूर्ण ज्ञायक महिमावंत भरा है।
ज्ञानस्वभाव-जितना ज्ञान ऊतना ही तू है, अन्य कुछ तू नहीं है। जितना जाननेवाला है उतना ही तू है। उसे नक्की करके उसमें स्थिर होनेसे तुझे तृप्ति होगी, संतोष होगा, आनन्द आयेगा, सब उसीमें होगा। कहीं और नहीं है। ज्ञानस्वभाव रूखा नहीं है, वह महिमावंत है। ज्ञान यानी मात्र शुष्कतासे जानते रहना, ऐसा नहीं है। ज्ञानस्वभाव तू महिमासे ग्रहण कर। वह ज्ञानस्वभाव कोई अलग है।
उतना सत्यार्थ कल्याण है, उतना ही परमार्थ है कि जितना यह ज्ञान है। उस ज्ञानको ही ग्रहण कर। तुझे संतोष होगा, उसमें तृप्ति होगी। कहीं और संतोष और तृप्ति होगी नहीं। जो स्वभावमेंसे संतोष होगा और तृप्ति होगी, वह कहीं और नहीं आयेगी। उसीमें आनन्द आयेगा। विकल्पसे छूटकर उसमें स्थिर हो जा, उसीमें सब भरा है।
(जबतक यह न हो) तबतक देव-गुरु-शास्त्रकी महिमा, अनेक जातकी महिमा, प्रभावना आदिके प्रसंगमें जुडता है। बाहर यह शुभभाव और अन्दरमें शुद्धात्मा कैसे पहचानमें आये, यह करनेका है। सम्यग्दर्शन हो तो भी अभी पूर्णता नहीं हुयी है, तबतक शुभभाव आते हैं। केवलज्ञान नहीं होता तबतक शुभभाव आये बिना नहीं रहते। मुनिओंको भी आते हैं। छठ्ठे-सातवें गुणस्थानमें झुलते हैं। मुनि हो तो भी जब बाहर आते हैं तब शास्त्र लिखते हैं। उपदेश आदि, भगवानके दर्शन आदि सब मुनिओंको आता है। परन्तु बाहर आये तो शुभमें और अन्दरमें छठ्ठे-सातवें गुणस्थानमें झुलते हैं। मुनिओंको दूसरा सबकुछ गौण हो गया है। वह सब तो है या नहीं ऐसा हो गया है।
अन्दर प्रगट करनेके लिये क्षण-क्षणमें लगन लगाये, भावना भावे। शुभभावमें, जिन्होंने प्रगट किया है ऐसे भगवान, जिन्होंने पूर्णता प्रगट की, जो साधना कर रहे हैं ऐसे गुरु और शास्त्रमें जा आये, उसे तू हृदयमें रकखर उसकी महिमा लाकर वहाँ खडा रहना। अन्य अशुभभावमें मत खडे रहना। बाहर आवे तो वहाँ खडे रहना है। अंतरमें शुद्धात्माकी लगन। बाहरमें सर्वस्व आ नहीं जाता, अन्दर शुद्धात्मा अंतरमें रह जाता है।
मुमुक्षुः- विश्रान्ति लेनी हो तो देव-गुरु-शास्त्र...
समाधानः- हाँ, देव-गुरु-शास्त्र। अन्दर शुद्धात्मा। जिन्होेंने स्वभाव प्रगट किया है ऐसे भगवान और जो साधन कर रहे हैं, ऐसे गुरु। शास्त्रमें सब वर्णन आता है।