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घोर जंगलमें सिंह, बाघ दहाडते हो, ऐसे घोर जंगलमें खडे हैं। दिन और रात। नहीं निद्रा ली है, ऐसे ... हैं, नहीं पानी पीया या नहीं आहार लिया। कैसे अडिग होते हैं!
मुमुक्षुः- वनमें भी कैसा लगता होगा? कामदेव...
समाधानः- कोई देव खडे हैं ऐसा लगे। .. जैसे स्तंभ खडा हो ऐसा दूसरोंको लगे।
.. उतना विकल्प है इसलिये थोडा-थोडा ज्ञान थोडा-थोडा बढता जाय ऐसा नहीं है कि थोडा-थोडा ज्ञान बढता जाय। एक सूक्ष्म विकल्प है इसलिये थोडा ज्ञान बाकी रहता है। जितना सूक्ष्म, जितना यहाँ रुका उतना वहाँ ज्ञान बाकी रहे ऐसा नहीं है। इतना विभाव कम हो गया इसलिये जितना कम हुआ, जितनी वीतरागदशा हुयी उतना यहाँ केवलज्ञान एवं प्रत्यक्ष ज्ञान हुआ और अब थोडा एक विकल्प रहा इसलिये थोडा बाकी है, ऐसा नहीं है। इतना बाकी है, उतना अंश बाकी है तो वहाँ सब बाकी है। वहाँ इतना हुआ ऐसा नहीं होता। तबतक परोक्ष ज्ञान है। प्रत्यक्ष ज्ञान नहीं होता।
... उपयोग है, वह अंतर्मुहूर्तका उपयोग है इसलिये समयका... उतना ही(विभाव) बाकी है तो अब उतना ही ज्ञान बाकी है, ऐसा नहीं है। यहाँ इतना विभाव रुक गया तो वहाँ पूरा (बाकी रहा है)। (विभाव) इतना ही (बाकी) है, वहाँ तो पूरा केवलज्ञान बाकी है।
... सम्यग्दर्शनमें भी ऐसा है। सर्व प्रकारसे यथार्थ श्रद्धा पूर्ण नहीं होती है तो थोडा मन्द पडता गया है उतना सम्यग्दर्शन होता है, ऐसा नहीं है। जितना अभी बाकी है, पूर्णरूपसे स्पष्ट नहीं हो जाता, तबतक सम्यग्दर्शन नहीं होता।
... केवलज्ञान हो, बस वह तो एक ... तबतक कुछ काम आये ऐसा नहीं है। ऐसे अन्दर विभाग नहीं पडते। थोडा प्रत्यक्ष और थोडा नहीं। श्रद्धा और आचरण है, लेकिन ज्ञानका उपयोग ... है। लेकिन वह प्रत्यक्ष ज्ञान नहीं कहलाता। उसे तो उसके साथ उतना ही सम्बन्ध है कि इतना बाकी है तबतक प्रत्यक्ष ज्ञान नहीं होता। ... तो सम्यग्दर्शन नहीं होता है। वह तो आचरण है। पूरा बाकी रह जाता है। जिस