Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi). Track: 114.

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ट्रेक-११४ (audio) (View topics)

मुमुक्षुः- वैसे बाहरसे क्रोधमें रस कम हुआ हो ऐसा बाहरसे तो दिखता नहीं।

समाधानः- दिखे या नहीं दिखे, उसका निश्चित नहीं कह सकते। ऐसे कोई बाह्य प्रसंग मुनिराजको सामने आये, कौन-सा आये, किस प्रकारका रस बाहरसे अंदाज लगाना मुश्किल पडता है, कई बार अंदाज लगा सकते हैं, कोई बार नहीं भी आवे। कोई ऐसे रागके प्रसंगमें अंदाज नहींल लगा सकते।

मुमुक्षुः- प्रत्येक विकारी भावके समय कम रसका वेदन हो ऐसा नहीं है?

समाधानः- रस कम है। भिन्न (रहता है), रस कम है। यह मेरा स्वरूप नहीं है, मैं उससे (भिन्न हूँ)। रस तो उसका हर वक्त कम ही है। भिन्न (रहता है), उसे अनन्तानुबंधी रस टूट गया है। रस टूट गया है। तीव्र रस नहीं है। भेदज्ञानकी धारा वर्तती है। भिन्न रहता है, एकत्वबुद्धि नहीं है।

मुमुक्षुः- .. पुरुषार्थ हो तो ही.. सहज भावसे स्वभाव ही ऐसा हो कि आसक्ति नहीं होती, तो फिर ... उसे कह सकते हैं? अच्छा नहीं लगता हो, खाने-पीनेमें अच्छा नहीं लगता हो। वहाँसे तो मनुष्य अपनेआपको विरक्त करता है तो उसे हम त्याग कहते हैं, परन्तु यदि वह स्वभाव ही हो तो फिर उसे त्याग कह सकते हैं?

समाधानः- किसीका स्वभाव ही ऐसा होता है कि कहीं अच्छा नहीं लगता, घुमना-फिरना आदि। वह तो सामान्य सज्जनता है। आत्माके हेतुसे हो कि आत्माके लिये यह सब क्या घुमना-फिरना? सहज उसका स्वभाव ही ऐसा है। एक प्रकारकी सज्जनता।

मुमुक्षुः- ..

समाधानः- आत्माके हेतुसे। आत्माके हेतुसे हो तो कहा जाय, अन्यथा नहीं।

मुमुक्षुः- .. ऐसा मन्द कषाय हो..

समाधानः- मन्द कषाय कहो, कितनोंका स्वभाव ही ऐसा होता है। लेकिन वह कोई आत्माके हेतुसे नहीं है। ऐसा मन्द कषाय तो बहुतोंको होता है। वह कोई कार्यकारी नहीं होता है। शुभभावरूप (है)।

मुमुक्षुः- उपयोगकी एकाग्रताके लिये क्या करना?