Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-२)

७२ करे, उसकी प्रतीत करे, उसकी भावना करे और उसके मार्ग पर चलनेका प्रयत्न करे। ऐसा सब पहले करे। वास्तविक रूपसे तो जब निर्विकल्प होता है तब भिन्न पडता है। पहले प्रतीतमें भिन्न पडे, निर्विकल्प स्वानुभूतिमें भिन्न पडे। परन्तु वास्तविक तो जब सम्यग्दर्शन होता है तब ही भिन्न पडता है। परन्तु उसके पहले उसकी भावना करे, प्रयास करे, लगनी लगाये, वह सब कर सकता है। उसके समीप जानेका प्रयत्न करे, उसे पहचाननेका प्रयत्न करे।

मुमुक्षुः- माताजी! जब समझाते हो उस वक्त तो इतना सरल लगता है कि मानो सब समझमें आ गया है, सब ख्याल आता है। जब प्रयोगमें रखनेका पुरुषार्थ करते हैं तब ऐसा लगता है कि दिन बीतते हैं परन्तु कुछ होता नहीं।

समाधानः- स्वयंके पुरुषार्थका कारण है, स्वयंकी मन्दताके कारण आगे नहीं बढ सकता है, इसलिये ऐसा लगता है। पुरुषार्थ करे उसे क्षणमें होता है, नहीं करे तो उसे कुछ समय लगता है, परन्तु भावना, जिज्ञासा तो उसे करने जैसा है। उसे उस मार्ग पर चलने जैसा है, उसे छोडने जैसा नहीं है। उसमें थकने जैसा नहीं है कि प्राप्त नहीं होता है, इसलिये उसके लिये थकान लगाने जैसा नहीं है। निरंतर करते ही रहना है। लगनी, जिज्ञासा, विचार, वांचन आदि।

स्वभावसे तो भिन्न ही है, परन्तु परिणतिमें उसे प्रगट करना वह अनादिका उसे दुर्लभ हो गया है। क्योंकि अनादिका पूरा प्रवाह उसे बाहरका हो गया है। अंतर दृष्टि करनी, अंतरमें जाना उसे दुर्लभ हो गया है। क्योंकि अनादिका पूरा प्रवाह बाहरका हो गया है। इसलिये बारंबार प्रयास करके स्वयंकी ओर लाये तो होता है। निरंतर करता ही रहे।

मुमुक्षुः- ... छोडना नहीं है, वही प्रयास, लगनी करते ही रहना है, अवश्य प्राप्ति होगी।

समाधानः- बहुत बार कहते हैं, मन्दरके द्वार पर टहेल लगाता रहे, मन्दिरके द्वार नहीं खुलते इसलिये छोडना नहीं। वहीं (प्रयत्न करता रहे)। मैं ज्ञायक हूँ, ज्ञायक हूँ, मैं आत्मा हूँ उसके द्वार पर निरंतर टहेल लगाता रहे। उसे छोडना नहीं। उसकी महिमा, उसकी प्रतीत, विचार करके मैं ज्ञायक ही हूँ, ऐसा बारंबार नक्की कर।

मुमुक्षुः- आपकी आज्ञाका पालन हो तो अवश्य प्राप्त होगा।

समाधानः- उसे अंतरसे महिमा हो तो प्राप्त हुए बिना नहीं रहे। सच्ची जिज्ञासा हो उसे प्राप्त हुए बिना नहीं रहता।

मुमुक्षुः- गुरुकी आज्ञाभक्ति लेनी पडे?

समाधानः- उसमें आज्ञा आ जाती है। सच्ची जिज्ञासा हो, उसमें आज्ञा साथमें