२८८ कि अन्दर गये बिना (रहेगी नहीं)। उसका मार्ग स्पष्ट ही होता है। मेरा मार्ग अन्दर बन्द नहीं हुआ है। अन्दर परिणति जायेगी ही। उसे अन्दरसे विश्वास होता है, सहजपने। वर्तमान उसकी धारा ही ऐसी चलती है। उसे छूटकर बारंबार उसे भेदज्ञानकी धारा ऐसी चलती है कि विकल्प छूटे बिना रहेगा ही नहीं। निर्विकल्प दशा हुए बिना रहेगी नहीं, ऐसा उसे विश्वास होता है। और हुए बिना रहे भी नहीं।
मुमुक्षुः- प्रति समयकी परिणति ही..
समाधानः- वर्तमान परिणति द्वारा उसे ख्याल है, विश्वास है कि निर्विकल्प दशा हुए बिना रहेगी नहीं। मैं तो मुक्तिके मार्ग पर ही हूँ। यह मार्ग मेरी हथेलीमें है। ज्ञायककी धारा मेरे हाथमें है, विकल्पका छूटना मेरे हाथमें है। उसे विश्वास है।
मुमुक्षुः- आज तो गुरु-भक्ति और गुरु-महिमाका दिन है।
समाधानः- सब बहुत अच्छा हो गया।
मुमुक्षुः- गुरु-भक्तिका स्वरूप..
समाधानः- गुरुदेवका तो जितना करे उतना कम है। गुरुदेवने तो महान उपकार किया है। मुक्तिका मार्ग पूरा प्रगट करके (दर्शाया है)। सब कहाँ थे और कहाँ आत्माकी रुचि प्रगट हो ऐसा मार्ग बता दिया है। मुक्तिका मार्ग पूरा स्पष्ट करके चारों ओरसे प्रकाश किया है। इस पंचमकालमें ऐसा मार्ग मिलना महा दुर्लभ था। गुरुदेवने तो महान उपकार किया है। भवभ्रमणमें गोते खा रहे जीवोंको सबको बचा लिया है।
मुमुक्षुः- महान-महान उपकार पूज्य गुरुदेवश्रीका।
समाधानः- महान उपकार है। इस पंचमकालमें एक महान विभूति! यहाँ गुरुदेवका जन्म-अवतार हुआ यह महाभाग्यकी बात है। तीर्थंकर जैसी वाणी उनकी, तीर्थंकरका द्रव्य और उनकी वाणी भी ऐसी ही थी। चारों ओरसे मुक्तिका मार्ग प्रकाश किया है। ऐसी जोरदार वाणी थी। अन्दर जिसे तैयारी हो उसे भेदज्ञान हुए बिना रहे नहीं। ऐसी उनकी वाणी थी।
मुमुक्षुः- गुरु-भक्ति, गुरु-भक्ति ऐसा हम करते तो हैं, परन्तु गुरु-भक्ति वास्वतमें प्रगटती हो ... और जो भक्ति आती है तब ऐसा होता है कि हमें बचा लिया है।
समाधानः- गुरुदेवने जो कहा है वह करना है। गुरुदेवकी वाणी और शास्त्र तो बहुत प्रकाशित हो गये हैं। यह तो इसमें उत्कीर्ण हुआ इसलिये फिर ऐसा हो गया।
मुमुक्षुः- आजका दिन बहुत अच्छा है। शुभ था, उल्लास था।
समाधानः- उत्सव हो गया। यह प्रकाशित हो तब उत्सव करना यह नवीन हो गया।
मुमुक्षुः- सब प्रताप तो आपका है। इतना ख्याल आता है कि गुरु-भक्ति कैसी