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होती है, एक-एक प्रकार देखते हैं तब ख्यालमें आता है कि हमको तो ऐसा कोई विचार भी उत्पन्न नहीं होता।
समाधानः- वह उत्कीर्ण करनेमें चारों ओरका आ गया है। दृष्टिको मुख्य रखकर चारों ओरका मुक्तिका मार्ग (आ गया है)। उसमें गुरुदेवका संक्षेपमें-सारमें सब आ गया है। बाकी तो गुरुदेवने सब विस्तारसे प्रगट किया है। शास्त्रके शास्त्र बने उतनी उनकी वाणी छूटी है। एक समयसार, प्रवचन रत्नाकरके कितने भाग होते हैं! उनकी वाणी तो विस्तारसे पसर गयी है।
मुमुक्षुः- आप कहते हो न कि संक्षेपमें दृष्टिपूर्वक सब बात..
समाधानः- पूरा मुक्तिका मार्ग आ जाता है।
मुमुक्षुः- दृष्टिकी प्रधानतासे सब उत्कीर्ण हुयी है।
समाधानः- सब बात अन्दर आती है।
मुमुक्षुः- ..
समाधानः- गुरुदेवके प्रतापमें सब समाविष्ट हो जाता है।
मुमुक्षुः- सादी भाषामें साधारण जनता शुद्धात्माकी बात समझ सके ऐसी भाषा गुरुदेवकी निकली है।
समाधानः- बहुत सादी भाषामें। ऐसी आश्चर्ययुक्त सबको असर करे ऐसी है। गुरुदेव विराजते थे। महाभाग्यकी बात थी कि भरतक्षेत्र शोभता था, ऐसे सन्त यहाँ पधारे।
मुमुक्षुः- कुदरती आज टेपमें ऐसा आया कि हमें केवलज्ञान समीप ही है।
समाधानः- स्थानकवासीमें सब (कहते थे), गुरुदेवके आसपास केवलज्ञान चक्कर लगाता है।
मुमुक्षुः- चालीस साल पहले।
समाधानः- संप्रदायमें सब कहते थे। उनको कानजीमुनि कहते थे। केवलज्ञान उनके आसपास चक्कर लगाता है। स्थानकवासीमें सब साधु कहे, मुनि कहे, सब कहते थे। स्थानकवासी संप्रदायमें उनके जैसे कोई साधु ही नहीं थे।
मुमुक्षुः- अत्यंत उल्लासके साथ ऐसा शब्द आया। गुरुदेवके प्रवचनमें उस वक्त तो इतने लोग बोटादमें (आते थे)।
समाधानः- लोग गलीमें बैठ जाते थे। शास्त्रोंके अर्थ करना, एक पंक्तिमेंसे कितने अर्थ निकलते थे। स्थानकवासी संप्रदायमें श्वेतांबरके शास्त्र हो तो एक शब्दमेंसे कितना निकलता, उन्हें कितना चलता था। एक अधिकार हो तो...
मुमुक्षुः- अलौकिक शक्ति...