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समाधानः- .. निश्चय और उसमें व्यवहार साथमें गौण होता है। जो अकेला व्यवहार ग्रहण करता है, उसका फल संसार है। अनादि कालसे जीवने अकेला ग्रहण किया है। और वह व्यवहार यथार्थ नहीं है। अकेली बाह्य दृष्टि, अकेली क्रिया, वह सब उसने अकेला ग्रहण किया है। अन्दर द्रव्यको ग्रहण नहीं किया है। अकेली भेद पर दृष्टि, अकेली परिणामों पर दृष्टि, स्वभाव ग्रहण नहीं किया है। जो असल वस्तु भूतार्थ है, जिसमेंसे स्वभाव प्रगट होता है, जो असल मूल स्वरूप है उसे ग्रहण किये बिना मुक्तिकी पर्याय प्रगट नहीं होती। स्वानुभूतिकी दशा उसे ग्रहण किये बिना नहीं होती। इसलिये द्रव्यदृष्टि मुख्य है। उतना तो जीवने बहुत बार ग्रहण किया है। चरणानुयोग आदि। .. मुख्य हो उसे संसारका फल नहीं आता, उसे तो वीतरागता होती है। जिसकी दृष्टि द्रव्य पर हो (उसे)। परन्तु जिसकी दृष्टि द्रव्य पर नहीं है, उसे संसारका फल है।
मुमुक्षुः- सादि अनन्त काल पर्यंत परिपूर्ण शुद्ध पर्यायोंका कारण दे ऐसा द्रव्य दृष्टिमें लेना है कि निष्क्रिय द्रव्य?
समाधानः- जिसकी दृष्टि द्रव्य पर है,.. जिसमें पर्यायें प्रगट होती हैं, ऐसा द्रव्य। लक्ष्यमें वह लेना है। परन्तु उसकी दृष्टि उस वक्त परिणाम पर नहीं है। वह तो सामान्य पर है। उसकी दृष्टि सामान्य पर है। परन्तु वह द्रव्य ऐसा है कि वह द्रव्य परिणामवाला है। सर्वथा परिणाम रहित वह द्रव्य नहीं है।
मुमुक्षुः- परिणाम नहीं है, परन्तु परिणामका कारणभूत शक्तिरूप सामर्थ्य लेकर द्रव्य बैठा है।
समाधानः- हाँ। परिणामवाला द्रव्य है। परिणाम बिनाका द्रव्य नहीं है। अनन्त गुण और अनन्त पर्यायकी शक्ति-सामर्थ्यवाला जो द्रव्य है, उसे लक्ष्यमें लेना है। उसकी दृष्टि परिणाम पर नहीं है। उसकी दृष्टि निष्क्रिय द्रव्य पर है। परन्तु उसमें द्रव्य सर्वथा निष्क्रिय नहीं है, परिणामवाला द्रव्य है। वह उसे ज्ञानमें होना चाहिये। उसकी दृष्टि द्रव्य पह होनेके बावजूद, उसे ज्ञानमें होना चाहिये कि द्रव्य परिणामवाला द्रव्य है। द्रव्य अकेला कूटस्थ द्रव्य नहीं है। अकेला कूटस्थ हो तो यह संसार कैसा?ुउसकी मोक्षकी पर्याय प्रगट हो, परिणाम जो पलटते हैं वह सब परिणाम है। निष्क्रिय द्रव्य