Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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... अपने क्षेत्रमें रहकर पूर्ण लोकालोकको जाननेवाला, एक समयमें उतना सामर्थ्य रखता है। वैसा उसका ज्ञान कोई अचिंत्य है।

मुमुक्षुः- एक ओर ज्ञानकी भी अपार महिमा गायी जाती है और एक ओर दृष्टिके विषयभूत तत्त्व, उसकी भी अपार महिमा (गायी जाती है)।

समाधानः- दृष्टिका विषयभूत जो द्रव्य है, उस द्रव्यमें अनन्त सामर्थ्य भरा है।

मुमुक्षुः- दृष्टि, वेदान्त कहता है ऐसे तत्त्वकी और ज्ञान, जैनदर्शन कहता है ऐसे तत्त्वका?

समाधानः- दृष्टि एवं ज्ञान दोनों साथमें होते हैं। एकान्त दृष्टि... यह वेदान्त कहते हैं ऐसा एकान्त तो है नहीं। इसलिये अनेकान्त (स्वरूप है) अतः वेदान्त नहीं है। परन्तु जैसी यथार्थ वस्तु है वैसी ही दृष्टि और जैसी वस्तु है वैसा ज्ञान, उसका नाम सम्यक मार्ग है। सम्यक एकान्त और सम्यक ... वेदान्तकी दृष्टिसे एकान्त ग्रहण करे, उसके साथ ज्ञान होता ही नहीं है। दृष्टि और ज्ञानका सुमेल है। एकान्त शून्य या एकान्त कूटस्थ, वह सब तो एकान्त हो जाता है।

दृष्टि स्वयंको ग्रहण करे। ज्ञान साथमें है वह दृष्टि ही अलग है। वेदान्त कहता है ऐसी दृष्टि नहीं है। ... दृष्टिका कार्य अलग है। यह तो सम्यक दृष्टि है। वह अलग जातका कार्य करती है। .. विषय कहते हैं, बाकी तो दृष्टि एवं ज्ञानका सुमेल होनेसे उसका सब सम्यक कार्य है।

मुमुक्षुः- पर्यायके विषय परसे गुरुदेव किस प्रकार द्रव्यदृष्टि पर ले जाना चाहते हैं?

समाधानः- द्रव्य पर दृष्टि कर। जो पर्याय है उसकी कर्ताबुद्धि तू छोड दे। परद्रव्यके साथ जो तेरी कर्ताबुद्धि है, वह कर्ताबुद्धि छोड, ऐसा गुरुदेवको कहना है। जो पर्याय परिणमनेवाली है वह परिणमती है। तू कर्ताबुद्धि छोड। परद्रव्यका कर सकता हूँ, दूसरेमें फेरफार कर सकता हूँ और दूसरेका स्वामी बनकर उसका फेरफार करना चाहे, उसकी स्वामीत्वतबुद्धि और कर्ताबुद्धि तोडकर तू तेरे द्रव्य पर दृष्टि कर, तू तेरा जो द्रव्य है उस पर दृष्टि कर।

जो पर्यायें परिणमती हैं, उसका तू कर्ता नहीं है, ऐसा कहना चाहते हैं। कर्ताबुद्धि छुडाते हैं। परन्तु क्रमबद्ध है वह पुरुषार्थपूर्वक क्रमबद्ध होता है। क्रमबद्धको पुरुषार्थके साथ सम्बन्ध होता है। जो पर्याय परिणमनेवाली हो वह परिणमती है, परन्तु जो स्वकी ओर स्वयं पुरुषार्थ करता है, स्वभाव ओर पुरुषार्थ करता है, उस पुरुषार्थके साथ क्रमबद्ध जुडा है। परन्तु जो स्वरूपकी प्राप्ति होती है, स्वभावकी, केवलज्ञानकी प्राप्ति होती है उसमें पुरुषार्थ साथमें जुडा है। पुरुषार्थ बिनाका अकेला क्रमबद्ध नहीं होता।

स्वयं द्रव्य पर दृष्टि करे। तू कर्ताबुद्धि छोड। तो वह ज्ञाता हो जाय। फिर उसकी