Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi). Track: 116.

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ट्रेक-११६ (audio) (View topics)

समाधानः- .. भवका अभाव होनेका मार्ग बताया है कि भव ही प्राप्त न हो, शरीर ही प्राप्त न हो। और आत्मा अन्दरसे अपना आनन्द अपनेमेंसे प्रगट हो। ऐसा मार्ग बताया है। बाहर आनन्द खोजने जाना नहीं पडे। अंतरमेंसे ज्ञान और आनन्द प्रगट हो, बाहर खोजने जाना नहीं पडे, ऐसा मार्ग बताया है। किसीका आश्रय लेना पडे नहीं, शरीरका आश्रय लेना पडे नहीं।

जैसे सिद्ध भगवान अपने आश्रयसे आनन्दमें रहते हैं, वैसा मार्ग बताया है। अपने स्वभावमें आनन्द है। परन्तु बाहर खोजता रहता है, इसलिये उसे शान्ति नहीं मिलती, अशान्ति रहती है। मार्गकी श्रद्धा हो तो उसे आधार रहे कि इस मार्गसे जाया जाता ैहै। मैं पुरुषार्थ नहीं कर सकता हूँ, परन्तु मार्ग तो यह है। तो उसे आधार रहता है। बाकी तो कितने ही मार्ग खोजनेके लिये, इससे मोक्ष होगा, ध्यानसे मोक्ष होगा, या इससे मोक्ष होगा, ऐसे गोते खाते हैं। गुरुदेवने तो दृढता आये ऐसा मार्ग (बताया है)। मार्ग तो यही है। करना स्वयंको बाकी रहता है वह स्वयंकी क्षति है।

मुमुक्षुः- गुरुदेवका सुना है तो बाहरमें इतनी शान्ति रही, यहाँ आ गये। आपकी इतनी श्रद्धा, तो उतनी शान्ति रही। वांचन, विचार कम है, फिर भी..

समाधानः- उतनी अन्दर श्रद्धा और उतनी अपूर्वता लगे तो शान्ति रहे। नहीं तो दूसरे लोगोंको तो कितनी आकुलता होती है।

.. मन तो ऐसा है। श्वेतांबरमें (आता है), मनडुँ किम ही न बाझे, कुन्थुजिन मनडुँ किम ही न बाझे, ज्यम ज्यम जतन करीना राखूँ त्यम त्यम अळगुं... ऐसा साधु लिखते हैं। यशोविजय। कुन्थुजिन मनडुँ किम ही न बाझे। ऐसे मनको स्वयं,... वह मन होने पर भी स्वयंकी मन्दता है। मनको भी स्वयं बदल सकता है। उस मनको बदल-बदलकर सब मुनि अन्दर आत्मामें लीन हुए। मनको बदल नहीं सकते ऐसा नहीं है।

अनादि कालका अभ्यास है तो मन खीँचकर ले जाय तो भी अपनी डोर अपने हाथमें रखे तो मन उसे बदल नहीं सकता। (स्वयं) मनसे बलवान है। मन जोरदार है तो आत्मा उससे अधिक बलवान है। अनन्त बल आत्मामें है। मनको बदललनेकी