Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-३)

२९८ शक्ति, अनन्त शक्ति आत्मामें है। बदल सकता है। जैसे अशुभभावमेंसे शुभभावमें आता है। जैसे यह लौकिक संसारके भावको बदलकर जिनेन्द्र देवके, गुरुदेवके, शास्त्रोंके विचार बदल सकता है। वैसे, मैं आत्मा हूँ, ऐसे बदल सकता है। अपने भावोंको बदले जा सकते हैं। मन हो तो, मनसे जोरदार आत्मा है। अनन्त शक्तिवान है। मनको वश करके अनन्त जीव मोक्ष पधारे हैं। तो भी जिज्ञासु हो वह भी उसकी शक्ति अनुसार कर सकता है। ... तो कोई मोक्ष नहीं जाते। आत्मामें अनन्त शक्ति है।

समाधानः- .. पुण्य बन्धता है। सेवा, दया, दान आदि सब हो तो उससे पुण्य बन्धता है, मोक्ष नहीं होता, भवका अभाव नहीं होता। भव वैसे ही चालू रहते हैं। करुणा, सेवा, दया, दान (करे तो) अच्छा भव मिले, देवलोक मिले या मनुष्य भव मिले। बाकी उससे अन्दर आत्मामें शान्ति हो ऐसा उससे नहीं होता। अंतरकी शान्ति जो आत्मामेंसे आनी चाहिये, वह शान्ति उसमेंसे नहीं आती। सेवा करे, करुणा करे, सब करे, परन्तु अंतरमें स्वयं देखे तो स्वयंको आकुलता दिखाई देती है। अंतरमें आत्मामेंसे जो शान्ति प्रगट होनी चाहिये, वह इन बाह्य भावोंसे नहीं होती। मुमुक्षुको करुणा होती है, दया होती है, दान होता है, सेवा (होती है)। परन्तु उस सेवासे मोक्ष नहीं हो जाता। या सेवामें धर्म नहीं होता, पुण्य होता है।

मुमुक्षुः- धर्म नहीं होता।

समाधानः- धर्म नहीं होता। शान्ति अंतरमेंसे प्रगट होनी चाहिये। खरे समय पर जो शान्ति अन्दरसे आनी चाहिये, वह तो आत्माको पहचाने तो खरे समय पर आत्मामेंसे शान्ति आवे। मैं आत्मा शाश्वत हूँ, उसमेंसे जो शान्ति आवे वह (यथार्थ है)। खरा समय आवे तब वह सेवा, कुरुणा आदि कुछ उसे साथ नहीं देते। वह तो उसे पुण्यबन्ध हुआ उतना। बाकी उसने अंतरमें यदि आत्माको पहचाना हो तो अन्दर भेदज्ञान करके शान्ति हो। बाकी शान्ति नहीं होती। उससे अनुकूलताएँ मिले। वह भी फले तब।

देव-गुरु-शास्त्रके भी शुभभाव है। परन्तु वह सब शुभभाव, पंच परमेष्ठीको साथमें रखनेका, वह मार्ग बताते हैं, उसमेंसे मार्ग समझमें आता है। वह बात अलग है। इसमें कोई मार्ग जानने नहीं मिलता। मात्र शुभभाव है। कोई व्यक्तिको दुःखी देखकर दया हो। वैसे करुणाके शुभभाव होते हैं। बाकी उसमेंसे आत्माका मार्ग नहीं मिलता। मार्ग आत्माका नहीं है, मुक्तिका मार्ग नहीं है। खरे समयमें वह अंतरमें शान्ति नहीं देता। खरे समयमें शान्ति (तो) आत्माको पहचाने, भेदज्ञान करे, स्वानुभूति करे तो अंतरमेंसे शान्ति आवे। वह कोई शान्ति नहीं देते। प्रवृत्तिका मार्ग वह कोई मुक्तिका मार्ग नहीं है। अन्दर भेदज्ञान करके आत्माको पहचाने वही मुक्तिका मार्ग तो वही है।

मुमुक्षुः- ...