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मुमुक्षुः- वस्तुको उपजानेेवाले।
समाधानः- वस्तुको उपजानेवाले, वस्तुको टिकानेवाले, वस्तु अनेक धर्मकी मूर्ति है। आश्चर्यकारी वस्तु है।
मुमुक्षुः- एक प्रश्न है कि निर्विकल्प अनुभूतिके समय ज्ञानगुण परिणमन तो करता ही है, तो उस वक्त आत्माके बंधारणके द्रव्य-गुण-पर्याय निर्विकल्पपने ज्ञात होते हैं या सबका एकरूप अनुभव होता है?
समाधानः- ज्ञानगुण परिणमन करता है वह परिणति तो मौजूद है। निर्विकल्पतामें यदि अन्दर जाय और द्रव्य, गुण, पर्याय नहीं रहते हो तो ज्ञानगुणका परिणमन भी नहीं रहता। परन्तु जो स्वयं विकल्प छूटकर निर्विकल्प होता है... पहले नय, प्रमाणसे नक्की किया। द्रव्य, गुण, पर्याय वस्तुमें है। वह विकल्पके साथ नक्की किया। अन्दरमें जाता है वहाँ निर्विकल्पमें भी द्रव्य-गुण-पर्याय सब वस्तुमें मौजूद है। परन्तु एकमेक यानी द्रव्यसे वस्तु भिन्न नहीं है। वस्तु गुण और पर्याय भिन्न नहीं है। भले एकमेक है, परन्तु उसके लक्षण, उसकी पर्यायें जैसा है वैसा ज्ञानमें ज्ञात होता है। वस्तुका स्वरूप निर्विकल्पपने जैसा है वैसा ज्ञात होता है। वह कोई भिन्न वस्तुकी भाँति ज्ञात नहीं होते। परन्तु एक ही वस्तुका स्वरूप (है)।
जैसे अग्नि और उष्णता। उष्णता अग्निसे भिन्न नहीं है, शीतलता पानीसे भिन्न नहीं है। वह सब दृष्टान्त है। शक्करमें श्वेतपना, मीठास आदि है। वह उससे भिन्न नहीं है। परन्तु वैसे गुण उसमें है। वैसे यह सहजपने हैं। इसलिये विकल्प छूटनेसे पहले विकल्पसे नक्की किया परन्तु फिर विकल्प छूट गये तो भी स्वरूप तो वैसा ही रह जाता है और स्वरूप ज्ञानमें ज्ञात भी होता है।
ज्ञान स्वयंको जानता है, अभेदको जानता है, ज्ञान भेदको जानता है, ज्ञान अनन्त गुणोंको, ज्ञान अपनी पर्यायोंको, सबको जाननेका ज्ञानका स्वभाव है। एकमेक यानी एक वस्तुमें सब है। उस अपेक्षासे एकमेक है। परन्तु गुणभेद, पर्यायभेद, लक्षणभेद और अंश-अंशीका भेद है, पर्याय पलटती है, वह सब जैसा है वैसा ज्ञानमें ज्ञात होता है। एकमेक यानी उसमें गुण और पर्याय नहीं रहते हैं, ऐसा नहीं है। ज्ञानकी जो पर्याय, ज्ञानका जाननेका स्वभाव और गुण जो परिणमन करते हैं। आत्मामें अनन्त भाव रहे हैं। वह जैसा है वैसा ज्ञान सबको जानता है।
अनुभूतिके समय कोई अपूर्व अनुभूति (होती है)। जो विकल्पसे नक्की किया उससे उसकी अनुभूति भले अलग और अपूर्व है, तो भी गुण-पर्यायका नाश नहीं हो जाता। उस अनुपम अनुभिूतिमें उसके गुण-पर्याय जैसा है वैसा उसे अदभुतरूपसे जैसा है वैसा ज्ञात होता है। एकमेक है, द्रव्य अपेक्षासे भिन्न-भिन्न नहीं है। एकमेक अनुभूति होनेपर