३१४ उस पर्याय पर ही उसकी दृष्टि है। और एकान्तरूपसे आत्माको भूल गया है। और सिर्फ अशुद्धता-अशुद्धताको देखता रहता है, अशुद्धताकी अनुभूति करता है। अशुद्धताका पक्ष करता रहता है। आत्मा दिखता नहीं है। यह सब राग-द्वेष टाल दूँ। कैसे टालना उसका उसे कोई ख्याल नहीं है। द्रव्यको भूल गया है और अकेली पर्यायमें दृष्टि हो गयी है और एकान्त हो गया है। इसलिये वह पक्ष छोड देनेका आचार्यदेव कहते हैं।
अशुद्धताका पक्ष अनादिकालसे किया। एक शुद्ध स्वरूपका पक्ष कभी नहीं किया है। इसलिये उस अपेक्षासे है।
मुमुक्षुः- एकान्त.. समाधानः- हाँ, एकान्तकी अपेक्षासे है। अर्थात ऐसा नहीं कहना है कि तेरी अशुद्धता पर्यायमें भी नहीं है, ऐसा आचार्यदेवको नहीं कहना है। आचार्यदेव (कहते हैं), द्रव्यदृष्टिसे तू शुद्ध है, उसे तू देख। तेरी शुद्धता तेरेमें भरी है। अशुद्धता तेरेमें घुस नहीं गयी है।
मातनो जय हो! जन्म जयंति मंगल महोत्सवनो जय हो!