Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 75 of 1906

 

ट्रेक-

०१४

७५

है, रोग शरीरमें आता है, आत्मामें नहीं आता।

(शांति) रखे कि मैं तो जाननेवाला हूँ, यह रोग मेरेमें नहीं है। ऐसे भिन्न जाने तो होता है। ये सब मेरा स्वरूप नहीं है, मैं तो भिन्न हूँ। सब उदय आते हैं, मैं तो भिन्न हूँ। गुरुदेवने कहा है, गुरुदेवके वाक्योंको याद करना। मैं भिन्न आत्मा हूँ। रोग तो शरीरमें आता है। सनतकुमार चक्रवर्ती थे, उन्हें भी रोग हुआ तो मुनि हो गये। अन्दर आत्मामें लीन रहते थे। रोग आये तो उसमें शांति रखनी। देवोंने कहा, मैं रोग मिटा दूँ। रोग क्या मिटाना? मेरा जो उदय है, उस उदयको कौन बदल सकता है? उन्हे स्वयंको लब्धि थी। थूक लगाये तो रोग मिट जाये। नहीं, जो रोग आया उस रोगको.... कर्म खिर जाते हैं। उतनी अन्दर शांति रखते थे। वे तो सम्यग्दृष्टि मुनि थे और आत्मामें छठ्ठे-सातवें गुणस्थानमें झुलते थे। रोग तो कहीं भी आता है, किसीको भी आता है। उदय तो उदयका काम करता है, परन्तु अन्दरसे मैं स्वयं ज्ञायक जाननेवाला भिन्न हूँ। शांति रखे।

... घरमें बैठकर जो हो सके वह करना। घरमें बैठकर भी हो सकता है। बाहर जानेका प्रसंग, सत्संगकी इच्छा हो, सब सुननेकी इच्छा हो, परन्तु वह नहीं बन पाये तो घरमें बैठकर भी हो सकता है। अच्छे विचार करना, वांचन करना, जो हो सके वह करना। घरमें बैठकर भी भाव अच्छे रख सकते हैं। सत्संगकी इच्छा हो, परंतु शरीर काम नहीं करे तो क्या हो सकता है? घरमें बैठकर हो सकता है।

मुमुक्षुः- खास लाभ लेने आये, लेकिन एक महिनेसे बिस्तर पर ही हूँ।

समाधानः- ... देव-गुरु-शास्त्रके सान्निध्यमें आनेकी इच्छा हो, लेकिन नहीं हो तो क्या हो सकता है? अन्दर आत्मामें अच्छे विचार करना। शांति रखनी। उलझन हो जाय तो बारंबार शांति रखनी, बारंबार विचार बदलना, बारंबार विचार बदलना। उलझन हो तो भी विचार बदल देना।

समाधानः- .. जितना करे उतना कम है। गृहस्थोंको शुभभाव तो आता है। शुभभाव आये बिना नहीं रहता। शुद्धात्माके ध्येयपूर्वक, जिनेन्द्र देव, गुरु, शास्त्रकी महिमा, भक्ति सब गृहस्थोंको आता है। पद्मनन्दि आचार्य कहते हैं, श्रावक बडे उत्सव आदि करते हैं। गृहस्थाश्रममें उसे शुभभाव होते हैं।

... तीर्थंकरका द्रव्य-गुरुदेव यहाँ पधारे। पंचमकालमें यहाँ पधारे, महाभाग्यकी बात है। गुरुदेव यहाँ कैसे? महाभाग्यकी बात है। गुरुदेव पधारे, सबको उपदेश मिला, उनकी वाणी कोई अलग थी, कोई अतिशयता युक्त, सबको जागृत करे ऐसी वाणी थी। अनन्त कालमें ऐसा योग मिलना महामुश्किल है।

मुमुक्षुः- उनकी भेंट ही कहाँ-से हो?