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समाधानः- कहाँ-से हो? तीर्थंकर भगवान मिले कहाँ? उनकी अपूर्व वाणीने सबको जागृत किया। उसमें इस पंचमकालमें..
मुमुक्षुः- प्रत्यक्ष हमको सुनने मिला। उत्तरः- प्रत्यक्ष। उन्होंने सच्चा मार्ग बताया। सब कहाँ अंधकारमें पडे थे, उन्होंने मार्ग बताया।
... जिन प्रतिमा जिन सारखी, कहते हैं। जिनेन्द्रकी प्रतिमा स्थापे। बनारसीदास कहते हैं। "अल्प भव स्थिति जाकी, सो ही जिनप्रतिमा, परमाणे जिन सारखी।' जिसकी अल्प भवस्थिति है, वह भावकी बात है। ऐसा भाव आये। जो भगवानको पहचाने वह स्वयंको पहचानता है, स्वयंको पहचानता है वह भगवानको पहचानता है। ऐसा निमित्त-उपादानका सम्बन्ध है। भगवानको पहचाने वह स्वयंको पहचानता है।
मुमुक्षुः- ...
समाधानः- .. उपादान तैयार हो उसे भवका अभाव हुए बिना नहीं रहता। ... उसे भगवानकी वाणी या गुरुकी वाणी मिलती है। भले स्वयं स्वतंत्र करता है, ऐसा निमित्त-उपादानका निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध है। ऐसा निमित्त, यहाँ उपादान तैयार होता है।
चत्तारी मंगलं, अरिहंता मंगलं, साहू मंगलं, केवलिपणत्तो धम्मो मंगलं। चत्तारी लोगुत्तमा, अरिहंता लोगुत्तमा, सिद्धा लोगुत्तमा, साहू लोगुत्तमा, केवलिपणत्तो धम्मो लोगुत्तमा।
चत्तारी शरणं पवज्जामि, अरिहंता शरणं पवज्जामि, सिद्धा शरणं पवज्जामि, केवली पणत्तो धम्मो शरणं पवज्जामि।
चार शरण, चार मंगल, चार उत्तम करे जे, भवसागरथी तरे ते सकळ कर्मनो आणे अंत। मोक्ष तणा सुख ले अनंत, भाव धरीने जे गुण गाये, ते जीव तरीने मुक्तिए जाय। संसारमांही शरण चार, अवर शरण नहीं कोई। जे नर-नारी आदरे तेने अक्षय अविचल पद होय। अंगूठे अमृत वरसे लब्धि तणा भण्डार। गुरु गौतमने समरीए तो सदाय मनवांछित फल दाता।