Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-३)

३२४

समाधानः- हाँ, शुद्धनयका जोर है।

मुमुक्षुः- वह निरंतर रहता है।

समाधानः- वह निरंतर है। शुद्धात्माकी ओर जो दृष्टि है वह तो वैसी ही है। और ज्ञान भी साथमें है। दोनोंको जानता है। शुद्धात्माको और शुद्ध परिणतिको दोनोंको ज्ञान जानता है। ज्ञान भी साथमें है। आनन्दकी अनुभूति, ज्ञान, उसके गुण सबको ज्ञान जानता है। दृष्टि और ज्ञान दोनों काम करते हैं, परन्तु वह निर्विकल्परूप है।

मुमुक्षुः- कोई अपेक्षासे जोर चालू है वह नयका जोर है?

समाधानः- हाँ, वह नय उस अपेक्षासे। निर्विकल्प है, विकल्पात्मक नहीं है। वह नय उसे छूटता नहीं है।

मुमुक्षुः- लडाईमें हो तो भी वह नय...

समाधानः- वह छूटता ही नहीं। द्रव्य पर दृष्टि गयी वह नय छूटती नहीं।

मुमुक्षुः- एक प्रश्न है, आत्मस्वरूपमें प्रवेश करते समय, पहली बार जब प्रवेश करता है, उस वक्त पुरुषार्थ कैसा होता है? और स्थिरताके समय निर्विकल्प पुरुषार्थ कैसा होता है? इन दोनोंके बीच, दोनों पुरुषार्थमें (क्या अंतर है)? उस वक्त भी पुरुषार्थ तो होता ही है, निर्विकल्प अवस्थाके समय।

समाधानः- निर्विकल्प अवस्थाके समय पुरुषार्थ कैसा होता है और..?

मुमुक्षुः- स्वरूपमें प्रवेश करते समय कैसा होता है?

समाधानः- प्रवेश करते समय, फिर निर्विकल्प हो गया उस समय? ऐसा कहना है? प्रवेश करते समय तो अभी उसे विकल्प है। उसे दृष्टिका विषय जोरदार है। स्वयं शुद्धात्मा है। विकल्पकी ओरसे उसकी परिणति छूटती जाती है। स्वरूपमें स्थिर होता जाता है, उसमें स्थिर होता जाता है। उस ओरका उसे जोर है। दृष्टिका जोर है कि मैं शुद्धात्मा हूँ और स्वयं निज स्वरूपमें स्थिर होता जाता है। विकल्प ओरसे हटता जाता है और शुद्धात्मामें स्थिर होता जाता है।

निर्विकल्प अवस्था तो सहज है। उसमें उसे पुरुषार्थ करता हूँ या इस ओर आता हूँ, ऐसा कुछ नहीं है। परिणति, जो पहले पुरुषार्थ हुआ, जो स्थिर हुआ और विकल्पसे छूटा वह निर्विकल्प अवस्थामें सहज परिणति प्रगट हुयी, उसे विकल्प या .. मैं पुरुषार्थ करुँ और यह पुरुषार्थ, ऐसा कुछ नहीं है। सहज परिणति प्रगट हो गयी।

मुमुक्षुः- स्थिरता टिकती होगी वह पुरुषार्थ...

समाधानः- पुरुषार्थ है, पहले जो पुरुषार्थ किया वह पुरुषार्थ सहज हो गया। फिर उसे पुरुषार्थ करता हूँ, ऐसा ध्यान ही नहीं है। पुरुषार्थका ध्यान नहीं है। परिणति उसमें टिक गयी है। शुद्धात्मामें परिणति टिक गयी है। जैसा आत्मा था उस रूप प्रगट