Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-३)

३२८ मात्र मोक्ष अभिलाष। मात्र मोक्षकी अभिलाष। मेरा आत्मा कैसे प्रगट हो? यह अंतरमें होना चाहिये।

मुमुक्षुः- अमृतचन्द्राचार्य पशु कहकर संबोधन करते हैं, गुरुदेव तो भगवान कहते थे। तो दोनोंके संबोधनमें इतना फर्क क्यों आता है?

समाधानः- गुरुदेव द्रव्य अपेक्षासे कहते थे कि तू भगवान है, तू सिद्ध है। जैसा तेरा आत्मा, वैसा भगवानका आत्मा। भगवान जैसा ही तेरा आत्मा है। तू उसे पहचान। तेरा आत्मा भगवान जैसा है। जैसे भगवान समवसरणमें विराजमान हैं, केवलज्ञान प्राप्त किया, उनके द्रव्य-गुण-पर्याय जैसे हैं, वैसे ही तेरे हैं। तू भगवान है। तू भगवानको पहचान। ऐसा गुरुदेव कहते थे। उसकी दृष्टि कर तो तुझे उस ओरकी परिणति अन्दरसे प्रगट होगी। ऐसा गुरुदेव कहते थे।

अमृतचन्द्राचार्यदेव कहते हैं, तू पशु जैसा है। वह पर्याय अपेक्षासे (कहते थे)। उन्हें दया, करुणा आती है। अनादि कालसे तू पर्यायमें पडा है। तू कहाँ शुद्धात्मा और कहाँ यह सब कलुषितता और कषायकी कालिमामें तू अनादिसे पडा है। तू पशु है। कहाँ-कहाँ भटक रहा है। इसलिये पशु करुणासे कहते हैं।

मुमुक्षुः- दोनों पहलू आ गये।

समाधानः- दोनों पहलू बराबर है।

मुमुक्षुः- उन्होंने पर्यायसे बात की, गुरुदेवने द्रव्यसे बात की।

समाधानः- द्रव्यसे बात की, उन्होंने पर्यायसे की। आचार्यदेव समझानेके लिये अनेक पहलूसे बात करे। द्रव्य और पर्याय दोनों आत्माका स्वरूप है। पर्यायमें अनादि कालसे मूढ हुआ, तू पशु जैसा कुछ समझता नहीं है, ऐसा कहते हैं। आत्माका क्या स्वरूप है? और एक-एक पक्ष ग्रहण करके तू कहाँ अटक गया है? तू पशु जैसा है। कलशमें कहा है, तू पशु जैसा है।

(गुरुदेव कहते हैं), तू भगवान है। तू विचार कर, तू भगवान है। ऐसा कहते थे। इन सबमें तू कहाँ अटक गया? यह तेरा स्वरूप नहीं है, तू भगवान जैसा है। बकरेके समूहमें आ गया है, तू बकरा जैसा है, मानों मैं बकरा हो गया। तू तो सिंह जैसा है। तू उसे पहचान, ऐसा गुरुदेव कहते थे।

मुमुक्षुः- .. आपने जल्दी दिखा दिया। मुमुक्षुको जाने देना सिखना चाहिये। जीवनमें यह बहुत काममें आये ऐसा सिद्धान्त है। आप तो बचपनसे ही ऐसा करते आये हो। मुमुक्षुको..

समाधानः- बाहरके सब प्रसंगमें सब जाने देना। उसके कोई प्रसंगका क्या दृष्टान्त देना? चाहे जैसा संयोग बने उसमें जाने देना, अपना आग्रह नहीं रखना। स्वयंको यदि