३३० अन्दरसे भिन्न रहता है, एकत्व नहीं होता है। न्यारी दशा प्रगट हुयी, अंतरमेंसे स्वानुभूतिकी दशा प्रगट हुयी, उसकी दशा पूरी अलग हो गयी है। इसलिये उसे लेप नहीं लगता है।
उसके बादवाले कलशमें ऐसा ही कहते हैं कि सम्यग्दृष्टिको लेप नहीं लगता है, इसलिये कोई कल्पना कर ले कि मैं सम्यग्दृष्टि हूँ, मुझे लेप नहीं लगता है, ऐसा मानकर यदि करे तो उसे लेप तो लगता है। उसके बादवाले कलशमें आता है। यहाँ तो ऐसा ही कहते हैं कि सम्यग्दृष्टिको लेप नहीं लगता है। उसकी त्याग-वैराग्यकी शक्ति सामान्यतः... पहले उसका त्याग हो, विशेष यानी गिन-गिनकर त्याग नहीं करता। सब विभावका त्याग उसे एकसाथ ही हो जाता है। ऐसी उसकी अंतरकी दशा (हो गयी है)।
विभावमें फिर यह विभाव रहा और वह रहा, (ऐसा नहीं), सर्वस्व त्याग हो गया। एक अपेक्षासे ज्ञायकके मूल तलमेंसे सर्वस्व त्यागी हो गया। परन्तु अभी अस्थिरता है, उसकी मुनिकी दशा नहीं है, अतः अस्थिरताका लेप है। फिर वह अंतरमें लीनता बढाता-बढाता स्वानुभूतिकी दशा बढते-बढते जब मुनिदशा आती है तब उसे सब छूटकर, अंतरकी साधना करनेके लिये जंगलमें जाता है। फिर उसकी दशा कोई अदभुत हो जाती है।
परन्तु गृहस्थाश्रममें उसकी दशा ज्ञायककी धारा कोई अलग ही वर्तती है। सुदृष्टि ए रीत ज्ञायक स्वभाव जाणतो। वह स्वयं अपनेआपको ज्ञायक जानता है। पुदगलकर्मरूप रागनो ज विपाकरूप उदय छे आ। यह मेरा स्वभाव नहीं है, मैं एक ज्ञायकभाव हूँ। मैं एक ज्ञायक और सदाके लिये ज्ञायक हूँ। शक्ति अपेक्षासे ज्ञायक था, परन्तु प्रगट ज्ञायक हो गया है। वह ज्ञायककी जीवनकी दशा जगतसे अलग हो जाती है।
उस कलशमें कहते हैं, उसे निर्जरा होती है, बन्ध नहीं होता है। इस प्रकार दशा साधकर चक्रवर्ती आदिको मोक्ष-मुक्तिका मार्ग प्रगट हुआ, मुक्तिकी लाईन हो गयी। ऐसी अंतरकी दशा भरत चक्रवर्तीने अरीसा भुवनमें एक थोडे बालका निमित्त मात्र हुआ कि उसमेंसे उन्हें ऐसा वैराग्य (आया कि), अंतरमें श्रेणि चढ गये और केवलज्ञानकी दशा प्रगट हो गयी। अंतरमें ऐसे न्यारे हो तो होता है न।
... सब किया लेकिन कोई मुक्तिकी दशा (प्रगट नहीं हुयी)। यम, नियम, संयम आप कियो। संयम लिया, त्याग वैराग्य लिया, पुनि त्याग वैराग्य अथाग लह्यो, वनवास रह्यो। वनवासमें रहा। वनवास रह्यो मुख मौन रह्यो। मुखसे मौन धारण किया। किसीसे बात नहीं की। मुख मौन रह्यो, दृढ आसन पद्म लगाय दियो। पद्मासन लाग दिया। दृढ आसन पद्म लगाय दियो, जप भेद जपे तप त्योंहि तपै। सब भेद जपा, जाप चपा, तप तपा। जप भेद जपे, तप त्योंहि तपै, उरसेही उदासी लही सबसे। सबसे उदास