समाधानः- .. एक ही है। एक ही करनेका है, गुरुदेवने कहा न कि, आत्माकी स्वानुभूति प्रगट करनी। स्वभाव है, अंतरमेंसे स्वानुभूति प्रगट करनी। गुरुदेवने बताया है, करना तो स्वयंको है। गुरुदेवकी हम सब पर बहुत कृपा थी। बरसों तक लाभ दिया। गुरुदेव जहाँ विराजते हो, वहाँ जीव जाय तो .. हो। जैसे भाव, स्वयं देव- गुरु-शास्त्रकी महिमाके और देव-गुरु-शास्त्रके सान्निध्यकी भावना हो तो वह योग मिल जाता है। जीव जो अंतरमें भावना करता है, अंतरसे भावना (करता है) तो वह योग मिल जाता है।
समाधानः- .. संसारमें जन्म-मरण, जन्म-मरण तो चलते ही रहते हैं। इस भवमें भवका अभाव हो ऐसा मार्ग गुरुदेवने बताया है। उसका श्रवण मिले और वह ग्रहण हो, रुचि हो, सच्चा तो वह है। जीवनकी सफलता तो है। जीवने ऐसे जन्म-मरण कितने ही अनन्त किये हैं। कितने देवके भव किये, कितने मनुष्यके किये, तिर्यंचके, नर्कके अनन्त-अनन्त भव किये। इस भवमें इस पंचमकालमें ऐसे गुरुदेव मिले और ऐसा मार्ग मिला तो भवका अभाव हो, आत्माक स्वरूप समझमें आय, वह आनन्दकी बात है।
मुमुक्षुः- ..
समाधानः- सब विचार बदल देना। संसारका स्वरूप ही ऐसा है। जन्म-मरण, जन्म-मरण.. जो कोई आता है, उसका देह परिवर्तन तो होता ही रहता है। आत्मा शाश्वत है। आत्मा जहाँ जाय वहाँ शाश्वत रहता है। आत्मा तो शाश्वत है। देहका परिवर्तन होता है। .. एक-एक आकाशके प्रदेशमें अनन्त बार जीवने जन्म-मरण किये हैं। कितने परावर्तन किये हैं, उसमें कुछ बाकी नहीं रखा है। कितने ही पुदगल जगतके ग्रहण करके छोड दिये। इस भवमें गुरुदेव मिले वह महाभाग्यकी बात है। सब प्राप्त हो गया है। ऐसे गुरुदेव, यह सम्यग्दर्शन यह सब अपूर्व है। सुनने मिलना मुश्किल है।
ऐसे देव-गुरु-शास्त्र मिलने, ऐसा सुनना, यह सम्यग्दर्शन, स्वानुभूति आदि सब अपूर्व है। वह करने जैसा है। .. देव-गुरु-शास्त्र, दूसरा सब हेय है। .. जीवको मिल गया है। .. कितने ज्ञानमें, कितने वैराग्यमें, कितनी महिमामें आगे बढे हैं। कितनी विरक्तिमें