Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-३)

३४० (आया है), यह सबको विचारने जैसा है।

समाधानः- .. केवली भगवानको उपयोग (नहीं रखना पडता), उनको सहज होता है। स्वको और परको एकसाथ जानते हैं। उनकी परिणति वैसी ही है। छद्मस्थको एक के बाद एक उपयोग रखना पडे, वैसे केवलज्ञानीको उपयोग नहीं रखना पडता। स्वयं स्वको जाननेमें पर ज्ञात हो जाता है, सहज ज्ञात हो जाता है। परिपूर्ण हो गये हैं, वीतराग दशा (पूर्ण हो गयी है)। स्वयं स्वभावमें लीन हो गये हैं। लीनतामें ज्ञानकी उतनी निर्मलता प्रगट हो गयी है कि उन्हें सहज ज्ञात होता है।

अनन्त शक्ति संपन्न ज्ञान है, ज्ञानमें कोई मर्यादा नहीं होती। ज्ञान परिपूर्ण जानता है। लेकिन उसे बाहर देखने नहीं जाना पडता। सहज परिणमते हैं। ज्ञानमें मर्यादा नहीं होती कि इतना ही जाने या इतना ही जाने, ऐसी मर्यादा ज्ञानमें नहीं होती। वह तो सहज जानते हैं। स्वको जाननेपर पर सहज ज्ञात होता है। स्वज्ञेय और परज्ञेय सबको केवलज्ञानी सहज जान लेते हैं। स्वपरप्रकाशक उसका स्वभाव है। परज्ञेयकमें एकत्व नहीं होते, फिर भी सहज जानते हैं।

मुमुक्षुः- ... पुरुषार्थकी धारा स्वकी ओर है, वैसे केवलज्ञान होनेके बाद वैसी ही रहती है?

समाधानः- .. स्वकी ओर धारा है वह तो साधकदशा है। केवलज्ञानीकी तो सहज दशा है। सातवेँ गुणस्थानके बाद तो श्रेणी चढे हैं। वह तो पुरुषार्थकी धारा है। केवली भगवान तो कृतकृत्य हो गये हैं। उन्हें .. सहज है। केवलज्ञानकी तो कृतकृत्य हो गये हैं। जो अंतरमें उपयोग गया सो गया, सहज स्वयं अपनेमें वीतरागदशारूप परिपूर्ण परिणमित हो गये। उन्हें अनन्त गुण-पर्याय जो सहज थे, वह सब प्रगट हो गये हैं, वेदनमें आ गये हैं।

सातवेँ गुणस्थानके बाद तो श्रेणी चढे हैं, वह तो साधकदशा है। उन्हें सातवेँ गुणस्थानमें भले बाहर उपयोग नहीं है, परन्तु वह तो साधकदशा है। उसमें कोइ परिपूर्ण वीतरागता प्रगट नहीं हुयी है। छद्मस्थ (दशा है)। उसमें लोकालोक ज्ञात नहीं होता है। स्वकी ओर अवलम्बन है।

.. धारा एकदम वीतरागदशाकी ओर उसकी परिणतिकी धारा शुरू हुयी है। अबी वीतरागदशा प्रगट नहीं हुयी है। ज्ञानकी परिपूर्णता नहीं है। केवलज्ञानीका वीतरागताका ज्ञान परिपूर्ण परिणमित हो गया है।

मुमुक्षुः- केवली भगवान.. ऐसा नहीं होता।

समाधानः- .. उन्हें करना नहीं पडता, उन्हें पुरुषार्थकी धारा शुरू हो गयी है। केवलज्ञानीको पुरुषार्थकी धारा नहीं है, वे तो कृतकृत्य हैं। जो करनेका था वह कर