Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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लिया है। कृतकृत्य वीर्य अनन्त प्रकाश जो। कृतकृत्यता हो गयी है।

मुमुक्षुः- .. शरीराकार ऐसा ख्यालमें लेना?

समाधानः- ऐसा कुछ नहीं है। शरीराकार ख्यालमें लेना पडे ऐसा नहीं है। उसका ज्ञायक स्वभाव ख्यालमें लेना है। स्वभावसे ख्यालमें लेना है, आकारसे ख्यालमें नहीं लेना है। आकार तो, उसका ज्ञान होता है कि असंख्य प्रदेशी आत्मा है। आकारसे ख्यालमें लेना (नहीं है)।

समाधानः- .. कोई भविष्यका वादा नहीं करता। जिसे धर्मकी रुचि हो भविष्यका वादा नहीं करता। और इस पंचमकालमें तो क्या भरोसा है? अतः अन्दर जो धर्मकी रुचि हो वही सत्य है। बाकी संसार तो चलता ही है।

मुमुक्षुः- बहिनश्री! आपने कहा कि बाहरके कार्य तो चलते ही रहते हैं, वह अपनेआप होते हैं?

समाधानः- वह स्वयंको राग है, रागके कारण हुए बिना रहते नहीं। राग कहाँ उसने तोडा नहीं है, रागके कारण होता ही रहता है। उसकी तीव्रता कम करके धर्मकी रुचि बढानी, वह सत्य है। मैं चैतन्यस्वरूप ज्ञायक आत्मा, कैसे प्रगट करुँ? वह करने जैसा है। राग है, उस रागके कारण सब होता रहता है। स्वयंने राग कहाँ तोडा है? अच्छे काम पहले करता है, वैसे धर्म पहले करना, ऐसा है। महापुरुष तो, गुरुदेव ऐसा ही कहते थे, धर्म पहले करना।

.. महिमा करनी, चैतन्य कैसे जाननेमें आये, वह सब जीवनमें करने जैसा है। भगवानको केवलज्ञान हुआ, उसकी वधामणी आती है। चक्ररत्न प्रगट हुआ, उसकी वधामणी आती है। तो प्रथम उत्सव भगवानके केवलज्ञानका करते हैं कि प्रथम मुझे धर्म है, बादमें मुझे यह है। ऐसा करते हैं।

मुमुक्षुः- ..

समाधानः- शास्त्रका अभ्यास करना और देव-गुरुकी महिमा हृदयमें रखनी। बाहरसे संयोग तो नहीं है, हृदयमें रखना। गुरु और देवको हृदयमें रखना, शास्त्रका अभ्यास करना। शास्त्रमें क्या मुक्तिका मार्ग बताया है, उसका विचार करना। .. वह तो अपनी शक्ति अनुसार सुलझाये दूर बैठे-बैठे। वहाँ तो एक शास्त्र होते हैं, देव-गुरु तो समीप नहीं है। .. हुआ हो तो वहीका वही, वहीका वही करता ही रहता है। ऐसे आत्माकी रुचि हो तो उसकी अपूर्वता लगे तो उसमें थके नहीं। गुरुदेवने कोई अपूर्वता बतायी है, उस अपूर्व मार्ग पर जाने जैसा है।

मुमुक्षुः- रात और दिन एक धुन।

समाधानः- बस, एक ही धुन यहाँ तो (है)। आत्मा स्वानुभूतिका मार्ग, भेदज्ञान