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अन्दर हृदयका भेद होकर जो हुआ हो और सुख हो वह अलग होता है। यह कोई बाहरमें.. अभी लौकिकमें आता है न? लोग उपवास करते हैं, ... उसमें किसीका मरण होता है, ऐसा पेपरमें आता है।
.. अन्दरसे ज्ञायकको प्रगट करना, भेद करना है विभाव और स्वभावमें, ऐसा अंतरमें होकर हो वह अलग होता है। ज्ञायककी धारा प्रगट हो वह अलग प्रगट होती है। उसके सहित जो शुभ परिणाम आवे वह अलग बात है।
.. अपूर्व मार्ग बताया है। उस मार्ग पर जाय तो अंतरमेंसे ज्ञायक प्राप्त हो, भेदज्ञानकी धारा प्रगट हो, शान्ति प्रगट हो, स्वानुभूति हो, सब उसी मार्गसे होता है। देशव्रत भी आये, उस मार्गपर मुनिपना आता है, सबकुछ उस मार्ग पर आता है। ज्ञायकको ग्रहण कर, भेदज्ञानकी धारा कर, स्वानुभूति प्रगट कर, सब उसी मार्ग पर प्रगट होता है।