७८ कार्य परसे दिखे। अंतर अभिप्रायमें परिणति एकत्वबुद्धि नहीं है, अंतर गहराईमें नहीं है। उसका आत्मा ऊर्ध्व ही रहता है, उसमें एकत्व होता ही नहीं। बाह्य सब संयोग पुण्य-पापके उदय अनुसार होते हैं। किसीके करनेसे कुछ नहीं होता।
मुमुक्षुः- मिथ्यादृष्टि छोड दे तब सम्यग्दर्शन होता है।
समाधानः- वह बात सत्य है। मिथ्यात्व जाये तो सम्यग्दर्शन होता है। अन्दर पुरुषार्थ करे तो सम्यग्दर्शन (होता है)। उसकी दृष्टि मिथ्यात्व है इसलिये उसे ऐसा लगता है किसीने मेरा बिगाडा, किसने सुधारा। कोई बिगाडता है, ऐसी दृष्टि मिथ्यादृष्टिकी होती है। सम्यग्दृष्टिको ऐसी दृष्टि नहीं है।
मुमुक्षुः- एकदम मन्द कषाय हो, उसमें कैसे भेद करना?
समाधानः- मन्द कषाय हो तो भी विकल्प है। विकल्पकी एकत्वबुद्धि (है)। मन्द कषाय हो तो भी एकत्वबुद्धि (है)। आत्माका अस्तित्व ग्रहण नहीं हुआ है, उसका ज्ञायक प्रगट नहीं हुआ है। जिसे स्वानुभूति होती है उसकी दशा तो अलग ही होती है। स्वानुभूतिके कालमें उसकी दशा आनन्दमय, अन्दर चैतन्यमय, चैतन्य चैतन्यमयरूप परिणमित हो गया, उसकी दशा अलग ही होती है। और मन्द कषाय वालेकी दशा और स्वानुभूतिकी दशा वालेके बीच प्रकाश एवं अन्धकार जितना अंतर है। भले मन्द कषाय हो तो भी।
वर्तमान भेदज्ञानकी धारा और एकत्वबुद्धि एवं मन्द कषाय हो तो भी भेदज्ञानकी धारा अलगी ही होती है। और यह मन्द कषाय हो तो उसे एकत्वबुद्धि है। उसने ज्ञायकका अस्तित्व (ग्रहण नहीं किया है)। उसे अन्दरसे जो ज्ञायकका अस्तित्व ग्रहण होकर अन्दरसे जो शांति आनी चाहिये वह नहीं आयी। उसकी दशा अलग होती है।
मुमुक्षुः- जिसको कभी अनुभव नहीं हुआ हो और प्रथम बार अनुभव होता है, उस वक्त वह मन्द कषायको भिन्न कर सकता है?
समाधानः- कर सकता है, कर सकता है। सच्चा आत्मार्थी हो, जिसे आत्माको ग्रहण करना है वह पकड सकता है। जो नहीं पकडे उसकी दृष्टि बराबर नहीं है। पकडे नहीं और जूठमें कल्पना कर ले, जूठमें-मन्द कषायमें संतुष्ट हो जाये, जिसे अंतरसे लगी है, उसे मन्द कषायमें संतुष्टता होती ही नहीं। अंतरमेंसे उसे शांति नहीं आये, अन्दरसे भिन्नता भासित नहीं हो, आकूलता टूटी नहीं, अंतरमेंसे आकूलता टूटी नहीं, शांति आयी नहीं, इसलिये यदि उसमें मान ले तो उसकी यथार्थ जिज्ञासा भी नहीं है। उसमें मान ले तो।
जिसे सच्ची जिज्ञासा हो वह कहीं भी भूलता नहीं और अटकता नहीं। उसे वैसे (परिणाममें) संतुष्टता ही नहीं होती। मुझे अभी तक कुछ हुआ ही नहीं है, ऐसा उसे