Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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लगे, मन्द कषाय हो तो भी। मुझे अन्दरसे कोई अलग दशा भासित होनी चाहिये वह भासी ही नहीं। इसप्रकार भिन्न दशा नहीं हो, वह अन्दर संतुष्ट नहीं होता। संतोष हो जाये तो उसने थोडेमें मान लिया, इसलिये उसके पुरुषार्थकी मर्यादा आ गयी। सच्चा आत्मार्थी हो तो उसे पुरुषार्थकी मर्यादा आये ही नहीं। उसे ऐसा लगता है, अभी अन्दर करना बाकी है, अंतरसे जो शांति और बदलाव आना चाहिये, वह नहीं आया है। भले मन्द कषाय हो, परन्तु कुछ भासता नहीं। शांति लगती है लेकिन आत्माका कोई भिन्न स्वरूप हाथ नहीं आया है। जो सच्चा आत्मार्थी है, वह कभी संतुष्ट होता ही नहीं।

मुमुक्षुः- मानना नहीं हो, परन्तु माताजी! जो धोखा खा जाये तो उसका क्या? जिसे अनुभव हुआ है वह तो भेद कर सकता है कि यह मन्दसे मन्दतर कषाय है, परंतु जिसे वैसा अनुभव नहीं हुआ है, वह तो उसमें धोखा खाता है। उसे ऐसा लगता है कि मुझे तो साक्षात अनुभव हो गया है।

समाधानः- उसे संतोष नहीं आता। सच्चा जिज्ञासु हो उसे संतोष नहीं होता। अन्दर शान्ति लगे तो भी अन्दर संतोष नहीं होता। अन्दरसे जो मुझे आकूलता छूटनी चाहिये, वह अभी छूटी नहीं है। अन्दरसे कुछ भासित नहीं हो रहा है। वह धोखा नहीं खाता। जो सच्चा आत्मार्थी है वह धोखा नहीं खाता। मेरी अभी भी कहीं भूल होती है। ऐसा उसे लगता है।

जो महापुरुष ज्ञानी और गुरुदेव एवं आचायाके शास्त्रमें आता है, वह जो मुक्तिके मार्गकी बात करते हैं, वैसा मुझे अन्दर नहीं लगता है। उसे वैसा संतोष नहीं होता। स्वयंने देखा नहीं है, परन्तु गुरुके पास सुना हो, शास्त्रमें स्वानुभूतिकी, भेदज्ञानकी बातें पढी हो, वह सब बातें आती है, ऐसा मुझे अंतरमेंसे उस जातिका उल्लास या वैसी शान्ति (नहीं लगती)। मुझे ऐसा लगे कि, यही मार्ग है, वैसा अन्दरसे जो निर्णय आना चाहिये ऐसा जोरदार नहीं आता। इसलिये इसमें कुछ भूल है।

सच्चा जिज्ञासु हो वह थोडे पुरुषार्थमें अटक नहीं जाता। उसे ऐसा लगता है कि ऐसे अटक जानेसे मेरी भूल होती है, ऐसी खटक उसे निरंतर रहती है। मेरी कहीं न कहीं भूल होती होगी, इसलिये वह अन्दर अटकता नहीं। जिसे थोडेमें मान लेना हो कि मुझे जल्दी करना है, मुझे कुछ करना है, अब मुझे हो गया, अब मुझे हो गया, ऐसा संक्षेपमें जिसे मान लेना हो, ऐसी कल्पना करनी हो वही उसमेें संतुष्ट हो जाता है।

जो सच्चा खोज करनेवाला है, मुझे आात्माका ही करना है, आत्माका ही प्रयोजन है, वह किसीको दिखानेके लिये या मुझे गलत तरीकेसे मनानेके लिये नहीं करना है,