Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-३)

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समाधानः- गुरुदेवने स्वानुभूतिका, भेदज्ञानका मार्ग बताया है, वह मार्ग ग्रहण करनेका है। स्वयं ही खोजता रहे, जिसे जिज्ञासा होती है, उसे तृप्ति नहीं होती।

समाधानः- .. गुरुदेवने मार्ग बताया वही करनेका है। जन्म-मरण, जन्म-मरण होते ही रहते हैं, ऐसे तो कितने जन्म-मरण हुए, अनन्त। अनन्त (बार) देवलोकमें गया, अनन्त बार तिर्यंतमें गया, अनन्त भव मनुष्यके मिले, अनन्त बार नर्कमें गया। ऐसे अनन्त-अनन्त भव किये। उसमें इस भवमें गुरुदेव मिले, ऐसा मार्ग बताया, भवका अभाव करनेका। सब कहाँ पडे होते हैं, क्रियासे धर्म होता है, बाहरमें इतना कर ले तो धर्म होता है, धर्म अंतरमें रहा है। मात्र बाहरमें नहीं है। अंतरमें धर्म है, गुरुदेवने बताया कि अंतर आत्मा शाश्वत है उसे तू ग्रहण कर ले।

आत्मा शाश्वत है। यह शरीर तो बदलता ही रहता है। उसकी आयुष्य स्थिति पूरी होती है तब देह और आत्मा भिन्न हो जाते हैं। आत्मा चला जाता है। आत्मा शाश्वत रहता है। दूसरी गतिमें जैसे भाव किये हो उस अनुसार (चला जाता है)। गुरुदेवने मार्ग बताया और अंतरमेंसे आत्मा ग्रहण हो, और यह शरीर भिन्न और मैं भिन्न, यह सब विभाव भी मेरा स्वरूप नहीं है। ऐसा भेदज्ञान करके जाय तो सफल है। उसकी रुचि करे, उसकी महिमा करे तो भी अच्छा है कि गुरुदेवने ऐसा अपूर्व मार्ग बताया है। वह करने जैसा है।

जन्म-मरण करते-करते भवका अभाव करनेका मार्ग गुरुदेवने बताया है। जन्म- मरण इतने किये हैं कि इस आकाशके एक-एक प्रदेशमें जन्म-मरण करता है। ऐसे अनन्त भव किये हैं। अनन्त माताओंको रुलाया है, अनन्त-अनन्त भव किये हैं। कुछ बाकी नहीं रखा, शास्त्रमें आता है। ऐसे जन्म-मरण टालनेके लिये भेदज्ञान, सम्यग्दर्शन और स्वानुभूति करके कितने ही छोटी उम्रमें संयम लेकर आत्माकी साधना करनेको जंगलमें चले जाते कि आत्माकी साधना करके अब हम अन्दर केवलज्ञान प्रगट करें। शाश्वत आनन्द आत्मामें है, उसे प्रगट करें। ऐसा करनेके लिये छोटे-छोटे बालक भी सब छोडकर चले जाते।

गुरुदेवने अंतरमें मार्ग बताया है कि पहले तू भेदज्ञान कर। बादमें सब आता है। ज्ञान, दर्शन, चारित्र। ज्ञान और दर्शन प्रगट कर, बादमें चारित्र होता है। ऐसे जन्म- मरण जीवने अनन्त किये हैं। अनन्त कालमें जीवको सब कुछ मिल चुका है। गुरुदेव कहते हैं न कि, एक सम्यग्दर्शन, जिससे भवका अभाव हो वह प्राप्त नहीं हुआ है। और एक भगवान जिनवर स्वामी नहीं मिले हैं। मिले तो स्वयंने भगवानको स्वीकारे नहीं कि यह भगवान हैं, ऐसा उसने पहचाना नहीं। इसलिये उसे मिले ही नहीं।

इस भवमें गुरुदेव मिले, जिनेश्वर देव अनन्त कालमें मिले, गुरुदेव मिले तो गुरुदेवने