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जो मार्ग बताया उसे ग्रहण कर। वह करने जैसा है। अन्दर आत्मा शाश्वत है। उसमें आनन्द, ज्ञान (है)। आत्माको भव लागू नहीं पडता, कोई रोग लागू नहीं पडता। वैसा ही है, उसे कोई हानि नहीं पहुँची, इसलिये उसे पहचान ले।
समाधानः- .. करता नहीं है, अंतरमें जाता नहीं। अपना स्वभाव है, स्वयं जाये तो अंतरमें ही है। लेकिन करता नहीं है। अनन्त भव देवके किये हैं। अनन्त बार पशुमें गया, अनन्त मनुष्यके किये, अनन्त बार नर्कमें गया है। सबमें अनन्त बार गया है। इसमें इस पंचमकालमें गुरुदेव मिले तो यह करने जैसा है। तो मनुष्य जीवन सफल है। कोई किसीको रोक नहीं सकता। बडे चक्रवर्ती चले जाते हैं। चक्रवर्ती, बडे राजा, आयुष्य पूरा होता है, आत्माको कोई नहीं रोक सकता। गति करके चला जाता है। जैसा उसका भव हो वहाँ चला जाता है। कोई नहीं रोक सकता। देह पडा रहता है, आत्मा चला जाता है। आयुष्य हो तब तक सब उपाय करे, रोग टालनेका उपाय उसे लागू पडता है, आयुष्य पूरा होता है तो कुछ लागू नहीं पडता। कोई रोक नहीं सकता। ... बाकी सब ऐसा ही है। उसमें वैराग्य करने जैसा है।
चत्तारी मंगलं, अरिहंता मंगलं, साहू मंगलं, केवलिपणत्तो धम्मो मंगलं। चत्तारी लोगुत्तमा, अरिहंता लोगुत्तमा, सिद्धा लोगुत्तमा, साहू लोगुत्तमा, केवलिपणत्तो धम्मो लोगुत्तमा।
चत्तारी शरणं पवज्जामि, अरिहंता शरणं पवज्जामि, सिद्धा शरणं पवज्जामि, केवली पणत्तो धम्मो शरणं पवज्जामि।
चार शरण, चार मंगल, चार उत्तम करे जे, भवसागरथी तरे ते सकळ कर्मनो आणे अंत। मोक्ष तणा सुख ले अनंत, भाव धरीने जे गुण गाये, ते जीव तरीने मुक्तिए जाय। संसारमांही शरण चार, अवर शरण नहीं कोई। जे नर-नारी आदरे तेने अक्षय अविचल पद होय। अंगूठे अमृत वरसे लब्धि तणा भण्डार। गुरु गौतमने समरीए तो सदाय मनवांछित फल दाता।