Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-१२६

रत्नत्रय प्रगट होते हैं और पूर्ण पर्याय प्रगट होती है। अकेले अंश पर दृष्टि करनेसे नहीं, पूर्ण द्रव्य पर दृष्टि करनेसे कार्यशुद्ध पर्याय प्रगट होती है।

मुमुक्षुः- माताजी! ज्ञायकको जो पकडना है, ज्ञायकको, तो वर्तमानमें तो ... विश्व दिखता है। ज्ञायक अप्रगट है, अब ज्ञानमें रागादि ख्यालमें आते हैं कि यह राग है या यह कषाय है अथवा परपदार्थ है। उस ज्ञानसे ज्ञायकको भिन्न करके पकडना कैसे?

समाधानः- उसे भिन्न करके पकडना कि यह जो राग दिखता है, यह दिखता है, वह दिखता है, दिखाई देता है वह मैं नहीं, परन्तु उसे जाननेवाला मैं हूँ। उसे भिन्न करके (जाने)। जो एकत्वबुद्धि हो रही है, यह राग दिखता है, यह दिखता है, बाहरका दिखता है, सब दिखता है, परन्तु जो दिखाई देता है वह वस्तु मैं नहीं हूँ, परन्तु उसमें जाननेवाला (मैं हूँ)। सब पर्यायें चली जाती है, उसके बीच जो जाननेवाला रहता है, वह जाननेवाला मैं ज्ञायक हूँ। उस ज्ञायकको ग्रहण कर लेना, उसका अस्तित्व ग्रहण कर लेना। पर्याय जो सब होती है, उसके बीच जो द्रव्य रहता है, जो जाननेवाला अखण्ड है, वह मैं हूँ। ऐसे उसका अस्तित्व ग्रहण कर लेना। उसका ज्ञायकरूप अस्तित्व है।

मुमुक्षुः- पुरुषार्थ करनेकी युक्ति सूझ जाय तो मार्गकी उलझन टल जाय।

समाधानः- पुरुषार्थ करनेकी युक्ति अर्थात जो मार्ग है, वह मार्ग उसे अन्दरसे सूझ जाय कि यह सब जो विभाव होते हैं वह मैं नहीं हूँ, परन्तु मैं चैतन्य हूँ। ऐसी सूक्ष्म दृष्टि करनेकी कला, उसकी कला, भेदज्ञान-भेदविज्ञानकी कला यदि हाथमें आ जाय तो प्रगट हो जाय। उलझन टल जाय।

लेकिन वह कला प्रगट करनेके लिये उतनी तैयारी चाहिये, उतनी महिमा, उतनी जिज्ञासा, उतने तत्त्वविचार, उतनी गहराई हो तो प्रगट होता है। तो उसकी कला सूझे। कल सूझनेके लिये उतना धैर्य, उतनी अंतरमेंसे जिज्ञासा चाहिये तो कला प्रगट होती है, तो उलझन टले।

मुमुक्षुः- ... प्राप्त नहीं होता, सम्यकत्व बना रहे और पर्याय बदल जाय, मनुष्यपर्यायसे देवपर्याय ... माताके पेटमें नव महिने ऐसे ही रहता है तो क्या सम्यकत्व बना रहता है?

समाधानः- पूर्णता नहीं होती है तो भी सम्यग्दर्शन रहता है। एक भवसे दूसरे भवमें। देव मनुष्यभवमें जाता है तो जिसको क्षायिक सम्यग्दर्शन होता है तो माताके गर्भमें भी उसको रहता है। सम्यग्दर्शन रहता है। तीर्थंकर भगवान माताके गर्भमें आते हैं तो तीन ज्ञान लेकर आते हैं। मति, श्रुत और अवधि तीन ज्ञान उनको होते ही हैं। छूट नहीं जाते।