Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-३)

३५६

मुमुक्षुः- क्षयोपशम सम्यकत्वी...?

समाधानः- क्षयोपशम सम्यग्दर्शन पलटता है, क्षायिक नहीं पलटता। और अप्रतिहत धारा होती है तो नहीं पलटता है, परन्तु क्षायिक तो पलटता ही नहीं। ... मनुष्यभवमें गर्भमें रहते हैं तो भी जिसको क्षायिक होता है वह रहता है।

मुमुक्षुः- स्वरूपका उग्र आश्रय करनेसे क्षायिक सम्यग्दर्शन प्रगट होता है न?

समाधानः- स्वरूपका उग्र आश्रय। अप्रतिहत धारा, उसकी धारा अप्रतिहत होती है। उग्र आश्रय भी करता है और धारा अप्रतिहत (होती है)। बादमें ऐसी दृढ हो जाती है कि बादमें पलटता नहीं। उग्र आलम्बन तो है ही, परन्तु पलटे नहीं ऐसा आलम्बन, एकसमान आलम्बन लेता है।

मुमुक्षुः- सम्यग्दर्शनका पुरुषार्थ कैसे करें? कैसे होता है?

समाधानः- अंतरमेंसे होता है। भेदज्ञानकी धाराका अभ्यास करनेसे होता है। मैं ज्ञायक हूँ, मैं चैतन्य हूँ, ऐसी भेदज्ञानकी धारा भीतरमेंसे प्रगट करनेसे होता है। जिसको बाहर कहीं चैन नहीं पडता है, जिसको भूख लगती है तो वह खाये बिना नहीं रहता, वैसे जिसे अंतरमेंसे प्यास लगे तो पुरुषार्थ किये बिना रहता ही नहीं। ऐसे ज्ञायक.. ज्ञायक.. ज्ञायकके बिना उसे संतोष नहीं होता। ज्ञायकमें महिमा लगे, ज्ञायकमें रुचि लगे, ज्ञायकका अभ्यास निरंतर हो तो होता है।

स्वानुभूतिका अभ्यास करना। यह शरीर मैं नहीं हूँ, विभावस्वभाव मैं नहीं, मैं ज्ञायक हूँ। ऐसी ज्ञायककी महिमा करना। शब्दरूप नहीं, परन्तु ज्ञायककी महिमा लगे, उसमें रुचि लगे, वह अभ्यास करना। शास्त्र स्वाध्याय, तत्त्व चिंतवन आदि सब करके मैं आत्मा कैसा हूँ, यह समझनेके लिये सब होता है। देव-गुरु-शास्त्रके विचार.. मैं चैतन्य कैसे प्रगट करुँ? ऐसी जिज्ञासा करना। वह करनेका है।

समाधानः- ... अनादिसे जो प्रगट होता है, वह चैतन्यसे...

मुमुक्षुः- ...

समाधानः- समवसरणमें जाते हैं, गुरुदेव तो भगवानके दर्शन करने जाते हैं। देवलोकमें तो सब विराजते हैं। कुन्दकुन्दाचार्य, अमृतचन्द्राचार्य सब विराजते हैं। विराजते हैं देवलोकमें। स्वप्नमें तो आये, रामजीभाई कहते हैं वह कुछ नहीं। स्वप्नका तो ऐसा है, देवके रूपमें भी आये और गुरुदेवके रूपमें भी आये। कभी गुरुदेवके रूपमें आये, कभी देवके रूपमें।

मुमुुक्षुः- .. समाधानः- वह सब क्या कहना? देवके रूपमें आये। इसमें भी आये और देवके रूपमें भी आये।