१२६
मुमुक्षुः- आपको भी गुरुदेवका विरह हो गया। माताजीको तो बहुत विरह...
समाधानः- वे तो महापुरुष थे।
मुमुक्षुः- बहिन-बहिन करते थे।
समाधानः- उनका तो अदभुत था! द्रव्य ही अलग था, तीर्थंकरका द्रव्य था। मैं तो उनका दास हूँ। वे तो महापुरुष! उपयोग तो रखे, गुरुदेवको सब मालूम तो होता है। गुरुदेव उपयोग रखे। उन्हें ज्ञानमें तो सब आता है, परन्तु यहाँ आनेका भाव.... पंचमकाल है इसलिये अभी आना बहुत मुश्किल है।
समवसरण होता है, वहाँ देव साक्षात जाते हैं। यहाँ पंचमकालमें देवोंका आगमन ऐसा हो गया है। पंचमकालमें देव बहुत आते नहीं। और वे तो निस्पृह थे। उन्हें अन्दरसे सब धर्मका प्राप्त हो ऐसा प्रशस्त भाव था, परन्तु वे तो निर्लेप थे। इच्छा करे तो आनेकी शक्ति तो है, परन्तु ऐसे प्रतिबन्धवाले वे थे ही कहाँ? उन्हें भाव था कि सब धर्म प्राप्त करे। परन्तु वैसा उन्हें प्रतिबन्ध, विकल्प नहीं था। वे स्वयं ही कहते थे, कोई किसीका कर नहीं सकता।
मुमुक्षुः- एक बार पधारे तो चमत्कार हो जाय।
समाधानः- शासनके प्रशस्त राग... स्वयं ही कहते थे, कोई किसीका कर नहीं सकता। ऐसा भाव आये तो आनेकी शक्ति तो है।
मुमुक्षुः- उपयोग रखते ही नहीं होंगे, वहीं सब खजाना हो तो यहाँ...?
समाधानः- भगवान मिल गये उन्हें तो। भगवान, भगवान करते थे, भगवान मिल गये।
मुमुक्षुः- माताजी! ध्यानमें तो बैठते हैं, ज्ञायकका आनन्द कैसा...?
समाधानः- ज्ञायककी प्रतीत करनी चाहिये। विचार करके ... विचारना चाहिये तो ध्यानमें आये न?
मुमुक्षुः- विचार करते हैं उस समय तो प्रतीतमें आता है, फिर वह बात निकल जाती है।
समाधानः- अनादिका अभ्यास है इसलिये एकत्वबुद्धि हो जाती है। विचारमें बैठे तो बार-बार उसकी प्रतीति करना, बार-बार दृढ करना चाहिये, पुनः अभ्यास करना। अनादिका अभ्यास है इसलिये बार-बार करना चाहिये। थकना नहीं। एकत्वबुुद्धि तो निरंतर चलती है, तो इसको बार-बार दृढ करना चाहिये।
मुमुक्षुः- दूसरे काममें जब उपयोग जाता है तो वह बात निकल जाती है।
समाधानः- तो बार-बार करना। बारंबार करना, बारंबार विचार करना, बारंबार करना। तत्त्वका विचार, स्वाध्याय (करना)। ज्ञायक महिमावंत है, बारंबार विषय करना