है तो उसका कारण तो कुछ है। ऐसे अन्याय नहीं होता, कोई किसीके घर, कोई किसीके घर जाता है। आत्मा शाश्वत है। उसके परिणामके फलमें कोई राजाके घर, कोई रंकके घर जन्म लेता है।
मुमुक्षुः- बहिनश्री! यह तो हुआ कर्मफल सिद्धान्त। लेकिन इसकी प्रक्रिया क्या है? प्रोसेस।
समाधानः- प्रक्रिया क्या है?
मुमुक्षुः- यानी यहाँसे एक जीवन समाप्त हुआ और द्वितीय जीव प्रारम्भ हुआ, उसके बीचका जो अन्तराल है, उसमें आत्मा किन स्थितिओंमेंसे गुजरती है?
समाधानः- अन्तरालमें तो उसकी गति होती है। जैसा उसका परिणाम होता है, उसके अनुसार गति होती है। उसकी प्रक्रिया कुछ देखनेमें नहीं आती।
मुमुक्षुः- एक-दो समयमें होता है। एक-दो समय, तीन समय। मेक्सिमम। उसमें क्या प्रक्रिया होगी? वहाँ पहुँचनेमें उत्कृष्ट तीन समय लगते हैं।
समाधानः- उसमें प्रक्रिया एक समयमें, दो समयमें वह पहुँच जाता है।
मुमुक्षुः- जैसे कहीं जगह क्या रहता है कि निश्चित अंतराल रहते हैं, कुछ तैजस शरीरका भी... जैसे अन्य दर्शनोंमें है कि तैजस शरीर लम्बे समय तक विद्यमान रहता है, सूक्ष्म शरीर जो है वह एकदम पलाहित हो जाता है, ऐसा कुछ?
समाधानः- ऐसा जैनमें नहीं है। एक समय, दो समय, तीन समय। कोई सीधी गतिमें जाता है, कोई टेढा जाता है तो ऐसा कोना होता है। परन्तु एक, दो, तीन समयमें पहुँच जाता है। उसमें अन्तराल नहीं रहता है। उसके बीचमें कुछ अन्तराल नहीं है। एक, दो, तीन समयमें पहुँच जाता है।
मुमुक्षुः- दो-पाँच महिने तक घुमते हैं, ऐसा कहते हैं, ऐसा नहीं है। .. अमेरिकासे आये थे, .... वह कहते हैं कि, अन्य दर्शन तो चार-पाँच महिना घुमते हैं जीव, ऐसा जैनमें नहीं है। एक, दो, तीन समयमें कार्माणशरीर लेकर वहाँ पहुँच जाता है। औदारिक शरीर यहाँ रह जाता है।
समाधानः- कोई पहले होता है, कोई बीचमें होता है, कोई तीसरे भागमें होता है। बादमें उसका फल आता है। ऐसा..
मुमुक्षुः- तीन भाग रहता है, तब.. मुमुक्षुः- एक तो यह सिद्धान्त हुआ और आपका विचार विशेष इस सम्बन्धमें जानता हूँ मैं। जैसा तीसरे भागमें होता है, मैं आपसे जानना चाहता हूँ। जैन सिद्धान्तमें बताया है, लेकिन आपसे..
समाधानः- जैन सिद्धान्तमें ऐसा होता है। कर्म प्रकृति कोई दिखाई नहीं देती।