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भागोंमें होता है वह यथार्थ है। वह कोई प्रत्यक्ष देखनेमें नहीं आता। छद्मस्थ उसको प्रत्यक्ष नहीं देख सकता। युक्तिसे, विचारसे (नक्की होता है)। जो युक्ति, दलीलमें आता है, स्वानुभवमें आता है वह कह सकते हैं। बाकी सब प्रत्यक्ष ज्ञानीके ज्ञानमें जो आया वह यथार्थ है।
मुमुक्षुः- बहिनश्री! ये जो कार्माण स्कन्ध रहते हैं, जो जन्म-जन्मांतर के लिये आयुबन्ध, नाम, गोत्र, अंतराय बन्ध वगैरह करते हैं, क्या यह बन्ध करनेके बादमें हट जाते हैं या आत्माके साथ पुनर्जन्मके साथ ट्रावेल करते हैं?
समाधानः- पुनर्जन्मके साथमें वह आते हैं।
मुमुक्षुः- कार्माण स्कन्ध?
समाधानः- हाँ, कार्माण आते हैं। कार्माण शरीर साथमें जाता है। जो पुनर्जन्ममें जाता है, उसमें कार्माण शरीर साथमें जाता है।
मुमुक्षुः- ऐसा नहीं है, बहिनश्री! कि जो हमारे यहाँपर जैसे शाता वेदनीय वगैरहके कार्माण स्कन्ध हैं, उसीको पुण्य नाम दिया गया हो और यही अन्य मत-मतांतरमें दर्शन शास्त्रमें तैजस शरीरके नामसे कहा गया हो?
समाधानः- कार्माण शरीर दूसरा है, तैजस शरीर दूसरा है।
मुमुक्षुः- कार्माण शरीरका एक भाग, १४८मेंसे एक तैजस बन्ध होता है। सब तैजस शरीर..
समाधानः- कार्माण कर्मका शरीर। और तैजस शरीर तो दूसरा होता है। औदारिक, तैजस, व्रैकियक वह शरीर नहीं। कार्माणशरीर तो कर्म,... वह पूर्व भवमें जाता है।
मुमुक्षुः- एक और (प्रश्न है), बहिनश्री! जैसे आज हमलोग मानते हैं कि विदेहक्षेत्रमें तीर्थंकर भगवान विद्यमान हैं। तो आज विदेहक्षेत्रमें तीर्थंकर भगवानकी विद्यमानताको लेकरके एक साधारण शब्दोंमें कैसे कहा जा सकता है कि वहाँकी भाषा, वहाँकी भावना, वहाँके विचार, वहाँके रहनेके तौर-तरीके वगैरहके बारेमें कहीं आपको कुछ अन्वेषणमें मिला हो, ऐसा आपके अनुभवमें आया हो, या आपने पढकर उसपर अधिक मनन करके और कुछ निश्चित धारणा बनायी हो कि विदेहक्षेत्रमें वर्तमानमें इस प्रकारकी स्थिति चल रही है।
समाधानः- विदेहक्षेत्रमें भगवान साक्षात विराजते हैं, उनकी दिव्यध्वनि छूटती है, समवसरणमें भगवान विराजते हैं। वीतराग हो गये हैं तो भी वाणी छूटती है। विदेहक्षेत्रमें एक धर्म चलता है, दूसरा धर्म नहीं है। भगवान जो धर्म कहते हैं, वह एक ही धर्म चलता है। इस पंचमकालमें दूसरे, दूसरे, दूसरे धर्म हैं, ऐसे धर्म नहीं है। एक धर्म-जैन धर्म चलता है, दूसरा कोई धर्म नहीं चलता है।