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मुमुक्षुः- एक बात है, चूकी आप और मैं, आप श्रद्धानी है, मैं आपकी बातमें श्रद्धान करता हूँ, लेकिन अन्य आदमी इसे क्यों मान ले? कैसे मान ले? उसको मनवानेका कोई आधार?
समाधानः- वह माने या न माने, सबकी योग्यता। जिसकी जिज्ञासा होवे वह मान सकता है, जिसकी योग्यता नहीं होवे (वह नहीं मानता)। जिसको आत्माका कल्याण करना हो, वह विचार करके मान ले। और नहीं माने तो उसकी योग्यता। नहीं माने तो क्या करे? अपने आत्माका कल्याण करना है, दूसरा माने तो मानो, नहीं माने तो नहीं मानो।
मुमुक्षुः- एक और शंका है, बहिनश्री! आज जो मुनि परंपरा आज जैसी भी चल रही है और जैसी मुनि परंपरा शास्त्रोंके अनुरूप है, इस दोनोंके जो अंतर है, उन अंतरकी जो दूरियाँ हैं, वह कभी मिटेगी? या जैसा आज यह समानांतर मुनिरूप चल रहा है और दूसरा जो समयसारमें मुनियोंके गुण वगैरहका विवेचन किया गया है, इनमें ये दूरियाँ बनी ही रहेगी और हम लोग भटकते रहेंगे? कि समयसारमें जो प्रणीत मुनिस्वरूप है, वैसे मुनि ढूँढते रहे, हमें नहीं मिले और वह मुनि लोग जो आज है, वह कहते हैं कि हम जैसे हैं वैसे ही समयसारके अनुरूप है और हम इसके बीच ही बीच डोलते रहेेंगे, इसका भी कोई रस्ता लगेगा कि नहीं लगेगा?
समाधानः- अपने आत्माका कल्याण कर लेना। वह क्या होगा, यह तो पंचमकाल है। ... पहले था, अब तो पंचमकालमें हुआ है। उसमें फेरफार-फेरफार चलता रहता है। कोई भावलिंगी मुनि, ऐसा काल आ जाता है तो भावलिंगी भी हो जाता है, कोई ऐसा काल आता है तो मात्र क्रियामें धर्म मानते हैं, ऐसा भी हो जाता है। ऐसा काल आया तो...
गुरुदेव जैसे यहाँ हुए सौराष्ष्ट्रमें, कि जिन्होंने आत्माकी स्वानुभूतिका मार्ग बताया। ऐसा भी काल आ गया। सच्चा धर्म बताया। गुरुदेव विराजते थे, उन्होंने सच्चा आत्माका मार्ग बताया, ऐसा भी (काल) आ गया। यह तो पंचमकाल है तो ऐसे फेरफार-फेरफार चलते ही रहते हैं।
मुमुक्षुः- तो सम्भावना नहीं है? जिस प्रकारसे आचार्य कुन्दकुन्ददेवने समयसारमें जिस प्रकारसे मुनियोंका वर्णन किया है, ऐसे मुनिधर्मकी सम्भावना आप इस पंचमकालमें आप नहीं मानती है, ऐसा?
समाधानः- कभी कोई ऐसा काल आ जाय तो हो भी सकते हैं। ऐसा काल आये तो हो भी जाय। वैसे तो पंचमकालके आखिरमें मुनि, अर्जिका, श्रावक, श्राविका होते हैं। अच्छा काल होवे, आ जाय तो हो भी सकते हैं। नहीं होवे ऐसा कहाँ