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समाधानः- मात्र मोक्ष (अभिलाष)। एक आत्माकी जिसे अभिलाषा है, दूसरी कोई अभिलाषा है। एक आत्मा ही चाहिये। जिसका एक आत्मा ही ध्येय है। सब कार्य और सब प्रसंगमें मुझे एक आत्मा ही चाहिये। मात्र आत्माकी अभिलाषा है। जो सब संकल्प-विकल्प, विभाव होते हैं, उसमें तन्मयता नहीं है, परन्तु मात्र एक आत्माकी अभिलाषा ही जिसे मुख्यपने वर्तती है। वह मुमुक्षुता (है)। मात्र मोक्ष अभिलाष, जिसे मात्र आत्माका ही अभिलाषा है। मुझे आत्मा कैसे प्राप्त हो? मुझे स्वानुभूति कैसे प्राप्त हो? जिसे बाहर कोई पदार्थकी इच्छा या किसी भी प्रकारकी अभिलाषा नहीं है। सब कायामें जुडे, फिर भी उसे सब गौण है। ध्येय मात्र एक आत्माका है कि आत्माका कैसे प्राप्त हो?
... स्वाध्याय, देव-गुरु-शास्त्रकी महिमा आदि सब होता है। लेकिन एक आत्मा कैसे प्राप्त हो? आत्माके बिना जिसे कहीं चैन नहीं पडती। ... बारंबार बताते थे कि तू तेरे आत्माको देख। आत्मा ज्ञानस्वभाव है। यह सब तुझसे भिन्न है, तू तेरे आत्माको देख। ऐसा बारंबार स्वयं अन्दरसे जिज्ञासासे ग्रहण करनेका प्रयत्न करे।
मुमुक्षुः- ... विहार किया है और जहाँ-जहाँ उनके पावन चरणस्पर्श हुआ है, वहाँ यह बात एकदम खडी हो गयी है।
समाधानः- सब तैयार हो गये हैं। चारों ओर जहाँ-जहाँ उन्होंने विहार किया, वहाँ यह आत्माकी बात चालू हो गयी।
मुमुक्षुः- गुरुदेव तो गुरुदेव थे। सबको ऐसे प्रेमसे गले लगाते थे। बच्चोंको, एक बार हाथ लगा दे तो वह दिगम्बर, सच्चा दिगम्बर हो गया, ऐसा लगे। गुरुदेवमें ऐसे कोई विशिष्टता थी।
समाधानः- गुरुदेवकी कृपा सब पर थी। सब आत्माको प्राप्त करो, ऐसी उनकी एक ही (बात थी)। मार्ग यह है, समझमें आता है? सब समझो। यह उनके हृदयमें था। प्रवचनमें (बोलते थे), समझमें आया, समझमें आया। पहले तो बहुत समझमें आता है, समझमें आता है, ऐसा आता था।
मुमुक्षुः- आपने पीछली बार कहा था कि जो भूमि यहाँ आयी है, तो उस भूमिमें जो साधना करते होंगे, वह आत्मा कैसा होगा? वह बात सत्य है, सौ प्रतिशत सच्ची है।
समाधानः- .. उनके ज्ञानमें अतिशयता, उनकी वाणीमें अतिशयता, उनकी बातमें ऐसा था। उनका प्रभाव ऐसा था।
मुमुक्षुः- अभी ये लोग आये हैं, होलमें बैठे तो.. गुरुदेव बोलते हो ऐसा लगे। साक्षात गुरुदेव बोलते हो ऐसा लगता है।