Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-३)

३७० गया, लेकिन भवका अभाव हो, वह मार्ग गुरुदेवने बताया कि तू शुद्धात्माको पहचान। उस शुद्धात्माको पहचान लेने जैसा है। विभावकी जाल खडी है, उससे स्वयंको भिन्न करके, मैं चैतन्य स्वभाव निर्विकल्प तत्त्व हूँ, उसे पहचानने जैसा है।

.. एक-एक आकाशके प्रदेश पर अनन्त-अनन्त बार (जन्म-मरण किये हैं)। अनन्त माताएँ हुयी, अनन्त माताको छोडकर स्वयं आया, स्वयंको छोडकर माता (चली जाती है), ऐसे अनन्त भव किये। एक शाश्वत आत्मा ही है कि जो सबसे भिन्न चैतन्यतत्त्व विराजता है। अनन्त गुणसे भरपूर, उसमें अनन्त सुख और आनन्द भरा है। वह ग्रहण करना। स्वयं पुरुषार्थसे ग्रहण करना। ज्ञानसे ग्रहण करना। ज्ञानका सूक्ष्म उपयोग करके, ुउसकी रुचि, जिज्ञासा करके ज्ञानका सूक्ष्म उपयोग करके, यह मैं चैतन्य हूँ और यह मैं नहीं हूँ, इस प्रकार स्वयं सूक्ष्म उपयोग करके ग्रहण करना। शास्त्रमें आता है न? प्रज्ञासे ग्रहण करना, प्रज्ञासे भिन्न करना।

मुमुक्षुः- .. जिसका अभ्यास कम हो, उसे कैसे करना?

समाधानः- अभ्यास कम हो तो मूल प्रयोजनभूत तत्त्वको ग्रहण करना। गुरुदेवने प्रयोजनभूत तत्त्व बताये, एक आत्मा ग्रहण करना। यह सब भिन्न हैं और मैं उससे भिन्न चैतन्यतत्त्व हूँ। उसमें अधिक अभ्यासकी आवश्यकता नहीं है। शिवभूति मुनिने एक भेदज्ञान किया तो उन्हें आत्मा ग्रहण हो गया। एक शब्द भी याद नहीं रहता था, परन्तु भाव ग्रहण कर लिया। गुरुने मासतुष कहा। मारुष और मातुष याद नहीं रहा। मासतुष-यह छिलका भिन्न और दाल भिन्न है, ऐसे आत्मा चैतन्यतत्त्व भिन्न है और यह विभाव-छिलका भिन्न है, ऐसे ग्रहण कर लिया।

मूल प्रयोजनभूत तत्त्व ग्रहण कर ले तो उसमें कोई अधिक अभ्यासकी आवश्यकता नहीं है। एक आत्मा भिन्न प्रयोजनभूत तत्त्व है, मैं चैतन्यतत्त्व ज्ञायक हूँ, मैं एक अभेद हूँ, उसमें भेदभाव आदि गौण है। मैं एक अखण्ड चैतन्य वस्तु हूँ। ज्ञानमें सब जानता है, परन्तु मैं एक अखण्ड चैतन्य ही हूँ, उसे ग्रहण कर।

मुमुक्षुः- ..

समाधानः- सरल है, अपना स्वभाव है इसलिये सरल है। अनादिका अभ्यास नहीं है और विभावका अभ्यास है, इसलिये दुर्लभ और कठिन हो गया है। क्योंकि अनादिका विभावका अभ्यास हो रहा है, इसलिये स्वयं अपनेआपको भूल गया है, इसलिये कठिन हो गया है। बाकी स्वयंका स्वभाव ही है, इसलिये सरल भी है और कठिन भी है। क्योंकि अनादिसे स्वयं बाहर दौडता है, अंतर दृष्टि नहीं की है।

गुरुदेवने मार्ग अत्यंत सरल कर दिया है। कहीं खोजने जाना पडे या किसीको पूछने जाना पडे, ऐसा नहीं है। गुरुदेवने ही सब बता दिया है। और गुरुदेवका साक्षात