Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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उपदेश सबने बहुत बार सुना है। एक सरल मार्ग कर दिया है, मात्र स्वयंको पुरुषार्थ करना बाकी रहता है। जो कुछ जानता नहीं है, मात्र क्रियामें पडे हैं, शुभभावसे धर्म होता है, ऐसा मानते हो, चैतन्यतत्त्वका क्या स्वभाव, कोई अदभूत तत्त्व, स्वानुभूतिको समझते नहीं हो, उसे तो कठिन लगे। गुरुदेवने तो एकदम सरल कर दिया है। मात्र स्वयंको पुरुषार्थ करना बाकी रह जाता है।

मुमुक्षुः- जीवन आत्मामय कर लेना चाहिये, तो वह भाव (कैसा है)? कैसे करना?

समाधानः- मैं आत्मा ही हूँ, यह विभाव मैं नहीं हूँ। मैं चैतन्यतत्त्व हूँ, ऐसी परिणति प्रगट कर लेनी। यह बाहरमें जो दिखता है वह मैं नहीं हूँ। मैं तो तत्त्व ही भिन्न हूँ। आत्मामय अपना जीवन-ऐसी परिणति प्रगट करनी चाहिये। ऐसी स्वानुभूतिपूर्वकका जीवन प्रगट करना चाहिये। आत्मामय। ऐसा नहीं हो तो उसका अभ्यास करना। मैं एक चैतन्यतत्त्व आत्मा हूँ। यह सब जो विभाव दिखता है, यह विभावका भेस मेरा नहीं है, मैं तो चैतन्यतत्त्व हूँ। ऐसा जीवन, बारंबार सहज परिणतिरूप कर लेना।

मुमुक्षुः- माताजी! आत्माको कैस प्रकारसे जाना जाता है?

समाधानः- आत्माको स्वभावसे-लक्षणसे पहचाना जाता है। उसका जो लक्षण होता है, उस लक्षणसे आत्माको पहचाना जाता है। ऐसा ज्ञानलक्षण आत्माका असाधारण लक्षण है। ज्ञानलक्षणसे उस द्रव्यको पीछाना जाता है। गुरुदेव और सच्चे देव-गुरु-शास्त्र बताते हैं कि आत्मा ज्ञानस्वभाव है। उसे ज्ञानलक्षणसे पीछानो। ज्ञानलक्षण असाधारण लक्षण है, सबसे विशिष्ट लक्षण है, उससे आत्मा पीछाना जाता है। विभाव लक्षण, राग लक्षण वह कोई आत्माका लक्षण नहीं है। जो जानता है वही आत्मा है, जो जाननेवाला है वही आत्मा है। जाननेका लक्षणसे वह पीछाना जाता है।

ऐसे तो भीतरमें अनन्त-अनन्त गुण हैं, अनन्त-अनन्त शक्तियाँ हैं। वह पहचाननेमें नहीं आता है, ज्ञानलक्षण है वह पहचाननेमें आता है। इसलिये ज्ञानलक्षणसे वह पीछाना जाता है कि ज्ञायक है। ज्ञायक पूर्ण द्रव्य स्वरूप ज्ञायक है, उससे पीछाना जाता है। ज्ञानलक्षणसे पीछाननेसे, ऐसा भेदज्ञान करनेसे, उसकी स्वानुभूति करनेसे जो भीतरमें उसके अनन्त गुण-अनन्त शक्तियाँ हैं, वह प्रगट होती है। निर्विकल्प स्वानुभूतिमें वह प्रगट होती है। पहले उसका भेदज्ञान होता है। मैं एक चैतन्य हूँ, मैं चैतन्य स्वभाव हूँ। यह सब लक्षण मेरा नहीं है, राग लक्षण आकुलता लक्षण है। मैं ज्ञानलक्षण निराकुलता, शान्ति लक्षण ऐसा मेरा लक्षण है। ऐसा क्षण-क्षणमें उसका भेदज्ञान (करे)। उसकी सहज दशा करनेसे, ऐसा सहजरूप हो जानेसे जो निर्विकल्प स्वानुभूति होती है तो उसमें सब अनुभवमें आता है। उसका जो स्वभाव है, वह सब अनुभवमें आता है। उसकी