Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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है। जो स्वयं सुखको इच्छता है, वह सुख कहीं बाहर नहीं है। सुखस्वरूप मैं हूँ। यह सब उसे आ जाता है। मैं सुखस्वरूप हूँ, शान्तिस्वरूप हूँ। यह विकल्प है वह सब आकुलता है। मैं निर्विकल्प तत्त्व हूँ।

जो शास्त्रमें कहा है, ऐसे नहीं, अपितु मैं स्वयं निर्विकल्प तत्त्व हूँ। विकल्प बिनाकी जो शान्ति हो, इस विकल्पकी जालमें आकुलता है, सब आकुलतासे भिन्न मैं ज्ञायक हूँ। आकुलता बिना निराकुलस्वरूप ऐसे नहीं, परन्तु मुझमें आनन्द गुण है। आनन्द गुण उसे दिखाई नहीं देता। वह तो उसे अमुक प्रकारसे नक्की करता है। ज्ञानलक्षण ऐसा है कि वह उसे ग्रहण हो सकता है। इसलिये आत्माको ज्ञानसे जानना, ऐसा कहनेका कारण वही है। आनन्द उसे दिखाई नहीं देता। आकुलता बिनाका मैं निराकुल, ऐसा उसे ग्रहण हो सकता है। परन्तु मैं आनन्द लक्षण हूँ, वह आनन्द उसे दिखता नहीं। तो भी वह अमुक प्रकारसे यथार्थ प्रमाणसे, यथार्थ ज्ञानसे जान सकता है। सच्चे ज्ञानसे नक्की कर सकता है। परन्तु ज्ञानलक्षण तो ऐसा है कि उसके अनुभवमें आ सके ऐसा है। अनुभव यानी स्वानुभूतिका अनुभव नहीं, परन्तु ज्ञानलक्षण उसे ज्ञात हो सकता है।

मुमुक्षुः- उसे प्रसिद्ध है। अपने वेदनमें..

समाधानः- ज्ञानलक्षण वेदनमें प्रसिद्ध है और आनन्द उसे वेदनमें उस वक्त अनुभवमें नहीं आता है। लेकिन अमुक प्रकारकी युक्तियोंसे नक्की (करता है)। लेकिन वह ऐसा नक्की कर सकता है कि उसमें फर्क नहीं पडता। ऐसा वह नक्की कर सकता है। मैं परिपूर्ण हूँ, वह सब युक्ति द्वारा, सर्व प्रकारसे नक्की कर सकता है। जो वस्तु हो, वह स्वतःसिद्ध (होती है), वह अधूरी होती नहीं। उसका कभी नाश हो तो उसे वस्तु ही नहीं कहते। वस्तु हो वह परिपूर्ण ज्ञानलक्षणसे भरपूर है। उसका कभी घात नहीं होता। तो उसे वस्तु कहें? यदि वस्तुका नाश होता हो तो। पूर्ण न हो वह वस्तु ही नहीं है। यथार्थ प्रकारसे नक्की कर सकता है।

मुमुक्षुः- जहाँ ज्ञानमय हूँ, ऐसा भाव ख्यालमें आये तो साथमें उसे अपनी अखण्डता, परिपूर्णता आदि सब..

समाधानः- वह सब युक्तिसे नक्की करे, सच्ची प्रतीत कर सकता है। लेकिन मुख्य उसमें ज्ञान है। वह उसे प्रसिद्धिमें आता है।

मुमुक्षुः- जिसे अनुभव हो गया, उसे भी जब-जब पुनः निर्विकल्पता उत्पन्न होती है, उस वक्त भी उसी लक्षणसे फिरसे होता होगा? या उसमेंसे कोई भी लक्षण द्वारा (अनुभव होता है)?

समाधानः- वह तो ज्ञायकका अस्तित्व ग्रहण किया, वह तो उसे सहज है। उसे कोई विचारकी कल्पना नहीं करनी पडती कि मैं आनन्द हूँ या अखण्ड हूँ। उसे