३८६ हूँ, चैतन्यता ये सब जीवविलास। वह चैतन्यता ऐसी है कि सबको ग्रहण हो ऐसी है। परन्तु स्वयं ग्रहण नहीं करता है। पुरुषार्थ करे तो ग्रहण होता है। परन्तु अनादिसे परके अभ्यासमें पडा है इसलिये ग्रहण नहीं होता। स्वयंकी ओरका अभ्यास करे तो अपने समीप ही है, दूर नहीं है।
मुमुक्षुः- शुद्ध बुद्ध चैतन्यघन स्वयं ज्योति सुखधाम, बीजुं कहीए केटलुं कर विचार तो पाम। विचार करनेका अभी भान नहीं है, बोल दिया।
समाधानः- शुद्ध बुद्ध चैतन्यघन स्वयं ज्योति सुखधाम। शुद्धतासे, बुद्धतासे चैतन्यघन है। शुद्ध बुद्ध चैतन्यघन स्वयं ज्योति सुखधाम-सुखका धाम है। स्वयं ज्योति सुखधाम, बीजुं कहीए केटलुं, कर विचार तो पाम। विचार कर तो प्राप्ति होगी। स्वयं विचार नहीं करता है।