Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi). Track: 16.

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ट्रेक-०१६ (audio) (View topics)

समाधानः- ... इतने साल बीत गये, उसमें कितने प्रसंग बने, वह बात याद करें तो पूरी नहीं हो सकती। कितने ही प्रसंग बने। बादमें तो एकदम तेजीसे गुरुदेवका प्रभावनाका योग था। यात्रा, प्रतिष्ठा आदि एकदम (होने लगे)। पहले शुरूआतमें सब शास्त्रके प्रसंग बन गये। समयसार, प्रवचनसार, पंचास्तिकाय आदि प्रकाशित हुए। शुरूआतमें सब शास्त्रसे ही (प्रभावना योग) शुरू हो गया। (संवत) १९९७की सालमें भगवान पधारे। सब प्रसंगकी एक-एक बात करें तो पूरी ही नहीं हो सकती।

... वह सब गुरुदेवके नामसे कहा, गुरुदेव ऐसा कहते हैं। ऐसा कहते थे। कितनी बार कहते हैं। कोई अर्थ पूछे तो...

... चाहे जैसी तबियत हो, स्वाध्याय भवनमें स्वयं अकेली ही बैठती हूँ। मुझे ऐसा कुछ नहीं होता।

गुजराती समयसार प्रकाशित हुआ तब इतना सुन्दर उत्सव हुआ था कि गुरुदेव घरपर पधारे थे। सर्व प्रथम गुजराती हिंमतभाईने किया, गुरुदेवने बहुत प्रमोद (था), शास्त्रका बहुत प्रमोद था। गुरुदेवने हिंमतभाईको कहा, हिंमतभाई निकट मोक्षगामी है, ऐसा कहा। वह प्रसंग तो अलग ही है। गुरुदेवके प्रतापसे बहुत प्रसंग बने हैं, इतने वषामें।

हिंमतभाईकी आत्मार्थी तो सच्ची आत्मार्थीता है। दोपहरको बात चली थी। इसलिये वह आ गया। ... आत्मार्थीता वह है, हिंमतभाईकी तो आदर्श आत्मार्थीता है। बचपनसे सत्य शोधक, वैरागी आदि बहुत था। (अधिक) क्या कहना? उनकी आदर्शता, आदर्श आत्मार्थीता है। गुरुदेवकी बहुत कृपा, हिंमतभाई गुरुदेवके कृपापात्र हैं। दोपहरको (वह बात हुई थी), इसलिये वह आ गया।

आत्मार्थीता वह है, हिंमतभाईकी तो आदर्श आत्मार्थीता है। बचपनसे सत्य शोधक, वैरागी आदि बहुत था। (अधिक) क्या कहना? उनकी आदर्शता, आदर्श आत्मार्थीता है। गुरुदेवकी बहुत कृपा, हिंमतभाई गुरुदेवके कृपापात्र हैं।

..जिनेन्द्र देव सर्वोत्कृष्ट पूजनयी हैं, परन्तु यह जिन प्रतिमा भी सर्वोत्कृष्ट (पूजनीय हैं)। उसकी भी महिमा उतनी ही है। जिन प्रतिमा जिन सारखी। उसकी महिमा भी