Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 843 of 1906

 

अमृत वाणी (भाग-३)

४१० है। परन्तु स्वयं एकत्वबुद्धि मान रहा है। उसे जाननेवाला स्वयं (है)। दूसरेको जानता है इसलिये नहीं, परन्तु स्वयं ही जाननेवाला स्वभावरूप स्वयं ही जाननेवाला है। उसका जाननेका स्वभाव है। परसे उसका अस्तित्व है, ऐसा नहीं, स्वयंसे उसका अस्तित्व है। ऐसा जाननेवाला स्वयं विराजता है, लेकिन वह दृष्टि देता नहीं है।

मुमुक्षुः- दोष अपना ही है।

समाधानः- अपना ही दोष है, अनादि कालसे।

मुमुक्षुः- जब भी नजर करे तब साक्षात स्वरूप वैसाका वैसा..

समाधानः- वैसाका वैसा है। जिसे आत्मा... उसकी भेदज्ञानकी धारा तो सहज वर्तती ही है। ऐसा ही है। उसका अस्तित्व सहज है। जो ख्यालमें ले उसे आ सके ऐसा है।

मुमुक्षुः- कभी-कभी ऐसा होता है कि अनन्त काल गया फिर भी जाना नहीं और आपके मुखसे सुनते हैं तब ऐसा लगता है कि ऐसा सहज है कि शीघ्र प्राप्त कर सके ऐसा है।

समाधानः- अनन्त कालका अनजाना मार्ग है, इसलिये विकट है। बाकी अपना स्वभाव है इसलिये सहज है। गुरुदेवने मार्ग बातकर सब सहज कर दिया है। कहीं किसीको भूल न रहे, भ्रम न रहे ऐसा स्पष्ट मार्ग बताया है। स्वयंको पुरुषार्थ करनेका बाकी रहता है।

समाधानः- ... ज्ञायककी रुचि होती है तो सहज होता है। उसे रटन करना नहीं पडता, उसे सहज हो जाता है। उसे खटक रहती है कि यह सब है, परन्तु मैं तो भिन्न हूँ, मैं तो भिन्न हूँ। ऐसी उसको भावना रहती है। रटना भी नहीं पडता। जिसको सम्यग्दर्शन हो गया उसकी बात तो दूसरी है, उसको तो सहज भेदज्ञान रहता है। उसका तो ज्ञायकमय जीवन हो जाता है। एक आत्मामय जीवन, आत्माकी कोई अलग ही दिशा हो जाती है। क्योंकि अंतरकी दृष्टि बदल जाती है। और जो भावना होती है उसको भी ऐसी खटक रहती है कि यह सब होता है, लेकिन मैं तो भिन्न हूँ। रटना नहीं पडता। ऐसी खटक रहनी चाहिये, खेद होना चाहिये कि मैं एकत्व क्यों हो जाता हूँ? जो जिज्ञासु होता है उसकी ऐसी अन्दर भावना रहती है, भावना।

मुमुक्षुः- एकत्वमें खेदबुद्धि आती है।

समाधानः- हाँ, ऐसा हो जाता है कि मैं ऐसे (एकत्व) हो जाता हूँ। मुझे आत्माका करना है, मुझे आत्माका करना है। जिज्ञासा रहती है, ऐसी भावना रहती है। .. कैसे सहज होवे? मैं कैसे आत्मा पहचानूँ? मैं कैसे तत्त्वका विचार करुँ? क्या द्रव्य है? कैसे गुण हैं? पर्याय कैसी है? कैसे मैं शास्त्र समझुँ? क्या गुरुदेवने बताया